पौड़ी। पौड़ी में पिछले 125 सालों से निरंतर आयोजित हो रही रामलीला की खासियत ये है कि यहां महिला पात्रों का अभिनय महिलाएं ही करती हैं।इस रामलीला को यूनेस्को ने भी अपना संरक्षण दिया है।बताया जाता है कि इस रामलीला की शुरुवात 1897 में कांडई गांव से हुई थी। तब गांव में ही रामलीला मंचन किया जाता था बाद में पौड़ी शहर में रामलीला का मंचन शुरू हुआ।
तब भीमल के पेड़ की लकड़ियां या चीड़ की लकड़ी के लीसे निकलते समय निकले छीलों को जलाकर की गई रोशनी में यह मंचन किया जाता था।इसके बाद 1930 में लालटेन की रोशनी में मंचन होने लगा और 1960 के बाद से विद्युत बल्बों की रोशिनी में मंचन हो रहा है।
पारसी थिएटर एवं शास्त्रीय संगीत पर आधारित पौड़ी शहर की रामलीला कंडोलिया देवता की विधि-विधान से पूजा-अर्चना से शुरू होती है।पहले रामलीला के पात्रों की भूमिका पुरुष पात्र ही निभाते थे, लेकिन सन् 2000 से रामलीला के मंचन में महिला पात्रों की भूमिका महिला कलाकार करने लगीं।