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मां के साथ चूड़ियां बेचकर विकलांग रामू बना आईएएस

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रमेश घोलप (या रामू) को अपने संघर्षपूर्ण हालातों में मां के साथ चूड़ियां बेचने का भी काम करना पड़ा। बचपन में पोलियो होने से वे विकलांग हो गए थे, लेकिन वे ऐसे सख्तजान आदमी साबित हुए कि उन्होंने भी देश की सर्वश्रेष्ठ सेवा 'आईएएस' में शामिल होकर ऐसे लाखों युवकों को प्रेरित किया जो कुछ कर गुजरने का सपना देखते हैं। आर्थिक तंगी और गैर-जिम्मेदार सरकारी अस्पतालों की मशीनरी के चलते उनके पिता ने दम तोड़ दिया, लेकिन जिम्मेदारियों ने महाराष्ट्र के महागांव के रमेश घोलप को समय से पहले परिपक्व बना दिया। 
 
उनके पिता गोरख घोलप साइकिल की दुकान चलाते थे और शराब पीने के आदी थे। चार लोगों का परिवार था, लेकिन सारी कमाई शराब की भेंट चढ़ जाती थी। किसी तरह गुजर बसर हो रही थी लेकिन शराब की लत के चलते उनके पिता को सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। परिवार को चलाने की सारी जिम्मेदारी उसकी मां विमल घोलप के सर पर आ गई। मां चूड़ियां बेचने लगी। उसके बाएं पैर में पोलियो हो गया था, लेकिन फिर भी वह अपने भाई के साथ मिलकर मां के काम में हाथ बंटाता था।
 
गांव के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने के बाद रामू को बड़े स्कूल में पढ़ने के लिए अपने चाचा के गांव बरसी जाना पड़ा। हालातों ने उसे बहुत गंभीर बना दिया था और वह अपनी पढ़ाई के जरिए परिवार को गरीबी के दलदल से बाहर निकालने के बारे में सोचता था। वर्ष 2005 के दौरान जब वह 12वीं की पढ़ाई कर रहा था, तभी उसके पिता का‍ निधन हो गया।
 
उल्लेखनीय है कि तब बरसी से महागांव जाने के लिए बस का किराया सात रुपए होता था, लेकिन विकलांग होने के कारण उसका किराया दो रुपए लगता था। पर अपने पिता की अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए उसके पास दो रुपए भी नहीं थे। पर पड़ोसियों की मदद से वह पिता के अंतिम संस्कार में शामिल हुआ। पिता की मौत ने उसे सदमे की हालत में ला दिया लेकिन अपने अध्यापकों के समझाने पर उसने खूब मेहनत की और 12वीं की परीक्षा में 88.5 प्रतिशत अंक हासिल किए।
 
बारहवीं के बाद उसने शिक्षा में डिप्लोमा लिया ताकि अध्यापक की नौकरी कर वह अपने परिवार की सारी जिम्मेदारियों को पूरा कर सके। डिप्लोमा करने के दौरान ही उसने बीए पास कर लिया। वर्ष 2009 में वह एक टीचर बन गया लेकिन अब उसका ध्यान परिवार, समाज और गांव के लोगों की समस्याओं पर केन्द्रित हुआ। उसने तय किया कि वह समाज की बुराइयों को मिटाने में सक्षम बनेगा।
 
उसने छह माह के लिए नौकरी छोड़ी और यूपीएससी की परीक्षा दी। मां ने गांव के कुछ लोगों की मदद से पैसे जुटाए। वह पुणे आकर सिविल सेवा परीक्षा के लिए अध्ययन करने लगा। वर्ष 2010 में उसे सफलता नहीं मिली। इसके बाद उसने अपनी मां को पंचायत चुनाव में बतौर सरपंच प्रयाशी बनाकर उतारा लेकिन कुछ वोटों से हार हुई। तब उसने हालातों पर काबू पाने का फैसला किया और गांव वालों के सामने कहा कि अब वह एक अ‍फसर बिना गांव में नहीं आएगा।
 
उसने स्टेट इंस्टीट्‍यूट ऑफ एडमिनिस्ट्रेटिव करियर्स की परीक्षा पास की। इससे उसे हॉस्टल में रहने की सुविधा मिली और वजीफा मिलने लगा। आखिर 2012 में रमेश घोलप ने यूपीएससी की परीक्षा में 287वीं रैंक हासिल की। बिना किसी कोचिंग के निरक्षर माता-पिता की संतान रामू ने आईएएस बनकर दिखा दिया। इसी वर्ष उसने महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा में रिकॉर्ड तोड़ सफलता पाई। फिलहाल वे झारखंड के उर्जा वि‍भाग में बतौर संयुक्त सचिव (ज्वाइंट सेक्रेटरी) पद पर तैनात हैं।
 
वे पीएससी और यूपीएससी की परीक्षा में जुटे परीक्षार्थियों की मदद भी करते हैं। वह गरीब और असहाय लोगों की मदद करने का अपना सपना जी रहे हैं। वे समाज के युवाओं के लिए एक प्रेरक मिसाल हैं जो कि पूरे समाज के लिए जीते हैं। 

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