वाराणसी। काशी में रंगभरी एकादशी पर होली की शुरुआत हो गई है। रंगोत्सव का अनूठा संगम वाराणसी की छवि को और मनोहारी बना रहा है। इस पर्व पर देवों के देव महादेव अपनी अर्द्धांगिनी का गौना कराने के लिए गाजे-बाजे के साथ निकल गए।
महाशिवरात्रि पर शंकरजी का विवाह पार्वती के साथ हुआ है और उनका गौना रंगभरी एकादशी पर होता है, इसलिए काशी की सड़कों पर रंग-गुलाल उड़ता नजर आ रहा है। काशी की अनूठी, अद्भुत और विश्वविख्यात श्मशान की चिता-भस्म की होली के दौरान हरिश्चंद्र श्मशान में चिता-भस्म होली खेली जाती है।
होली खेलते हुए यह शोभायात्रा या होली बारात रवींद्र पुरी से अघोराचार्य बाबा कीनाराम आश्रम से शुरू होकर हरिश्चंद्र घाट पहुंचती है। इस होली बारात में भोले के गण, देव, गंधर्व, किन्नर, भूत-पिचाश और दूरदराज से आए महादेव के भक्त, युवक-युवती डीजे की धुन पर थिरकते हुए हरिश्चंद्र आश्रम में पहुंचते हैं।
बाबा की नगरी काशी में शुक्रवार की शाम माता गौरा का गौना हुआ, इस दिन के साक्षी बनने के लिए भक्त विदाई से पहले काशी पहुंच गए।
महादेव अपनी जीवनसंगिनी को रजत पालकी पर बैठाकर अपने धाम मंदिर परिसर में ले गए। बाबा के दर्शन और रंगोत्सव के आगाज के चलते काशी की सड़कें रंग-अबीर के समुंदर में गोते लगाती नजर आ रही है।