Malegaon Bomb Blast case : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बृहस्पतिवार को मालेगांव विस्फोट मामले में सभी 7 आरोपियों को बरी किए जाने को सत्यमेव जयते की सजीव उद्घोषणा करार दिया। उन्होंने कहा, यह निर्णय कांग्रेस के भारत विरोधी, न्याय विरोधी और सनातन विरोधी चरित्र को पुनः उजागर करता है। कांग्रेस ने भगवा आतंकवाद जैसा मिथ्या शब्द गढ़कर करोड़ों सनातन आस्थावानों, साधु-संतों और राष्ट्रसेवकों की छवि को कलंकित करने का अपराध किया है। कांग्रेस को अपने अक्षम्य कुकृत्य को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करते हुए देश से माफी मांगनी चाहिए।
योगी ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, मालेगांव विस्फोट मामले में सभी आरोपियों का निर्दोष सिद्ध होना सत्यमेव जयते की सजीव उद्घोषणा है। उन्होंने कहा, यह निर्णय कांग्रेस के भारत विरोधी, न्याय विरोधी और सनातन विरोधी चरित्र को पुनः उजागर करता है। कांग्रेस ने भगवा आतंकवाद जैसा मिथ्या शब्द गढ़कर करोड़ों सनातन आस्थावानों, साधु-संतों और राष्ट्रसेवकों की छवि को कलंकित करने का अपराध किया है।
मुख्यमंत्री योगी ने कहा, कांग्रेस को अपने अक्षम्य कुकृत्य को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करते हुए देश से माफी मांगनी चाहिए। राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की एक विशेष अदालत ने वर्ष 2008 में मालेगांव में हुए बम विस्फोट के मामले में लगभग 17 साल बाद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सभी सातों आरोपियों को बृहस्पतिवार को बरी कर दिया।
अदालत ने विश्वसनीय और ठोस सबूतों के आभाव का हवाला देते हुए आरोपियों को बरी कर दिया। मालेगांव बम विस्फोट में छह लोग मारे गए थे और 101 अन्य घायल हुए थे।
10 दिनों में एटीएस के लिए दूसरा झटका : महाराष्ट्र में 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में बृहस्पतिवार को निचली अदालत द्वारा सभी सात आरोपियों को बरी किए जाने का फैसला महाराष्ट्र आतंकवाद-निरोधी दस्ते (ATS) के लिए पिछले 10 दिनों में दूसरा झटका साबित हुआ।
बम्बई उच्च न्यायालय ने 2006 के मुंबई सिलसिलेवार ट्रेन विस्फोट मामले में 22 जुलाई को 11 आरोपियों को बरी कर दिया था। इस मामले की जांच भी एटीएस ने ही की थी। एटीएस ने मालेगांव विस्फोट मामले की भी शुरुआती जांच की थी और मुख्य आरोपी प्रज्ञा सिंह ठाकुर एवं लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित विभिन्न आरोपियों को गिरफ्तार किया था। बाद में इस मामले की जांच राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने अपने हाथ में ले ली थी।
विशेष अदालत ने बृहस्पतिवार को अपने फैसले में कहा कि आरोपियों के खिलाफ कोई विश्वसनीय सबूत मौजूद नहीं हैं तथा अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि विस्फोटक मोटरसाइकल पर रखा गया था। विशेष न्यायाधीश एके लाहोटी ने जांच में कई खामियों की ओर इशारा किया और कहा कि अभियुक्तों को संदेह का लाभ मिलना चाहिए।
एटीएस ने 21 अक्टूबर, 2008 को जांच अपने हाथ में लेने के दो दिन के भीतर प्रज्ञा सिंह ठाकुर, शिवनारायण कलसांगरा और श्याम भवरलाल साहू को गिरफ्तार कर लिया था और दावा किया था कि विस्फोट दक्षिणपंथी चरमपंथियों द्वारा किया गया था। एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे के नेतृत्व में इस मामले का खुलासा हुआ था, लेकिन दुर्भाग्यवश वह 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमले के दौरान आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गए थे
एटीएस ने कुल 12 आरोपियों को गिरफ्तार किया था, जबकि रामजी कलसांगरा और संदीप डांगे को भगोड़ा घोषित कर दिया गया। उनका कोई पता नहीं चला। एनआईए ने 13 अप्रैल, 2012 को जांच का जिम्मा अपने हाथ में ले लिया। (इनपुट भाषा)
Edited By : Chetan Gour