मध्यप्रदेश में शिशुओं की स्वास्थ्य सुरक्षा के लिहाज से लगाए जाने वाले विभिन्न बीमारियों के जीवन रक्षक टीकों के मामले में उज्जैन संभाग को छोड़कर कोई भी संभाग ऐसा नहीं है जहां 12 से 23 माह के बच्चों का समग्र टीकाकरण 70 प्रतिशत से अधिक हुआ हो।
वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एएचएस) 2013 के अनुसार उज्जैन संभाग में 12 से 23 माह की आयु के 76.16 प्रतिशत बच्चों को संपूर्ण टीकाकरण का लाभ मिला था। बाकी कोई संभाग इतना लक्ष्य भी पूरा नहीं कर सका।
12 से 23 माह की आयु के शिशुओं को जो टीके अनिवार्यतः लगने चाहिए उनमें सबसे महत्वपूर्ण खसरे का टीका है। इसके अलावा इस अवधि में डीपीटी का बूस्टर टीका और पोलियो की बूस्टर खुराक भी जरूरी होती है। ये टीके बच्चे को खसरा, डिप्थीरिया, परट्यूसिस (सांस की बीमारी) और टिटेनस जैसी जानलेवा बीमारियों से बचाते हैं।
चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार ये जीवनरक्षक टीके तभी असरकारी होते हैं जब इनका पूरा कोर्स सही उम्र में दिया जाए। लेकिन मध्यप्रदेश के दस संभागों में से केवल सात संभाग ही ऐसे हैं जहां इन टीकों को दिए जाने का प्रतिशत 60 से 70 के बीच है।
तीन संभागों की हालत तो बहुत बुरी है इनमें से सागर में यह आंकड़ा 42.16 प्रतिशत, शहडोल संभाग में 52.56 प्रतिशत और रीवा संभाग में 58.63 प्रतिशत है। कम प्रतिशत वाले इन संभागों में से शहडोल संभाग के डिंडोरी जिले की स्थिति थोड़ी ठीक है जहां 68.6 प्रतिशत बच्चों का टीकाकरण हुआ।
जहां तक अन्य संभागों का सवाल है एएचएस-2013 के अनुसार उनमें से चंबल संभाग में 69.86 प्रतिशत, इंदौर में 68.93 प्रतिशत, ग्वालियर में 68.32 प्रतिशत, जबलपुर में 66.52 प्रतिशत, भोपाल में 65.5 प्रतिशत, और नर्मदापुरम संभाग में 64.46 प्रतिशत पूर्ण टीकाकरण हुआ।
जिलों की बात करें तो जिन जिलों में 12 से 23 माह के बच्चों के संपूर्ण टीकाकरण का प्रतिशत 70 से अधिक है उनमें इंदौर 85.5 प्रतिशत, रतलाम 82.2, उज्जैन 81.1, सीहोर 77.6, शाजापुर 77.4, ग्वालियर 76.3, राजगढ़ 75.9, नीमच 74.7, देवास 74.1, मुरैना 73.4, भोपाल 71.9 और भिंड 71.3 प्रतिशत शामिल हैं।
उज्जैन संभाग में टीकाकरण अभियान को लेकर अपेक्षाकृत अधिक जागरूकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस संभाग के छह जिलों में से पांच जिलों में संपूर्ण टीकाकरण का प्रतिशत 70 से अधिक है। केवल मंदसौर जिला ही ऐसा है जहां यह प्रतिशत 67.5 है।
इसी तरह सबसे कम प्रतिशत वाले जिलों में टीकमगढ़ 31.5 प्रतिशत, पन्ना 38.4, उमरिया 40.8, दमोह 42.4, छतरपुर 43.5, शहडोल 48.3 और विदिशा 48.9 प्रतिशत शामिल हैं।
ये आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में बच्चों को सारे जीवनरक्षक टीके लगाए जाने की दिशा में अभी बहुत कुछ काम करना बाकी है। सरकारी अभियानों के अलावा इस लक्ष्य को पाने में सामाजिक जागरूकता और प्रत्येक वर्ग के योगदान की भी बहुत बड़ी भूमिका है।