मध्यप्रदेश में बच्चों और गर्भवती माताओं को जानलेवा बीमारियों से बचाने के लिए चलाया जाने वाला टीकाकरण अभियान अपना लक्ष्य पूरा नहीं कर पा रहा है। हालांकि पिछले कुछ सालों में होने वाले प्रयासों से प्रदेश की शिशु मृत्यु दर में कमी आई है लेकिन मध्यप्रदेश आज भी इस मामले में देश में सबसे खराब स्थिति में है। इसका एक प्रमुख कारण बच्चों तक संपूर्ण टीकाकारण का लाभ सही तरीके से न पहुंच पाना भी है।
शिशु मृत्यु दर से आशय ऐसे बच्चों से है जो जीवित अवस्था में जन्म लेने के बाद से एक वर्ष तक की अवधि में ही मौत का शिकार हो जाते हैं। 2007 में प्रदेश में शिशु मृत्यु दर प्रति एक हजार बच्चों पर जहां 72 थी वहीं 2011 में यह घटकर 59 रह गई।
इसी अवधि के यदि राष्ट्रीय आंकड़ों को देखें तो हम पाएंगे कि देश में 2007 में जहां प्रति हजार शिशुओं पर मृत्यु दर का आंकड़ा 55 था वह 2011 में घटकर 44 रह गया। यानी राष्ट्रीय स्तर पर इस अवधि में शिशु मृत्यु दर में 11 अंकों की कमी आई वहीं मध्यप्रदेश में यह कमी 13 अंकों की रही। लेकिन मध्यप्रदेश शिशु मृत्यु दर के मामले में आज भी देश में गंभीर स्थिति वाला राज्य है और राष्ट्रीय औसत से 11 अंक पीछे है।
ऐसे में संपूर्ण टीकाकरण के लक्ष्य पूरे न होने पर मिलेनियम डेवलपमेंट गोल द्वारा 2015 तक तय किया गया प्रति हजार 41 अंक का लक्ष्य पाना प्रदेश के लिए और भी मुश्किल है।
प्रदेश में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के आंकड़े ही बताते हैं कि 2009-10 से 2011-12 की लगातार तीन साल की अवधि में टीकाकरण लक्ष्य और उसकी पूर्ति में अंतर बढ़ता ही जा रहा है। वर्ष 2009-10 में बच्चों को लगाए जाने वाले टीकों में से डीपीटी का लक्ष्य 93.35 प्रतिशत, टीटी का 91.12 प्रतिशत, पोलियो का 93.24 प्रतिशत, बीसीजी का 96.83 प्रतिशत और खसरे का लक्ष्य 92.34 प्रतिशत पूरा हुआ था।
वर्ष 2010-11 में इन टीकों को लगाए जाने के लक्ष्य में लगभग पांच से दस प्रतिशत की कमी आई। इस साल डीपीटी का लक्ष्य 84.80 प्रतिशत, टीटी का 87.91 प्रतिशत, पोलियो का 84.90 प्रतिशत, बीसीजी का 83.66 प्रतिशत और खसरे का लक्ष्य 84.18 प्रतिशत ही पूरा हो सका।
वर्ष 2011-12 में तो लक्ष्य और उपलब्धि का अंतर और भी ज्यादा हो गया। इस साल डीपीटी का लक्ष्य 72.74 प्रतिशत, टीटी का 66.40 प्रतिशत, पोलियो का 66.18 प्रतिशत, बीसीजी का 74.14 प्रतिशत और खसरे का लक्ष्य 72.74 प्रतिशत ही पूरा हो पाया।
इस लिहाज से देखा जाए तो 2009-10 की तुलना में 2011-12 में डीपीटी का लक्ष्य 20.61 प्रतिशत, टीटी का 24.72 प्रतिशत, पोलियो का 27.06 प्रतिशत, बीसीजी का 22.69 प्रतिशत और खसरे का लक्ष्य 19.6 प्रतिशत तक पिछड़ गया।
टीकाकरण के लक्ष्य और उसकी पूर्ति में आने वाला इतना बड़ा अंतर इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि टीकाकरण पर सरकार प्रतिवर्ष बड़ी राशि खर्च करती है और सरकारी अस्पतालों में बच्चों को ये टीके निशुल्क लगाए जाते हैं। यूनीसेफ के अनुसार प्रत्येक बच्चे को जन्म से लेकर 16 वर्ष की आयु के बीच कुल 21 टीके लगने चाहिए। ये टीके बच्चों को खसरा, टिटेनस, पोलियो, टीबी, गलघोंटू, काली खांसी, हेपेटाइटिस बी और जापानी एन्सीफैलाइटिस जैसी जानलेवा बीमारियों से बचाते हैं।