भारतीय ज्योतिषियों, तांत्रिकों और देवी भक्तों के लिए सोमवती अमावस्या के दिन आगामी 24 फरवरी की रात को अनूठा सिद्ध योग 40 वर्षो बाद आ रहा है।
मंदसौर जिले के प्रसिद्ध ज्योतिषी पंडित कमलाकर बलवंत कुलकर्णी ने बताया कि 24 फरवरी की रात्रि 7.45 बजे से चन्द्रमा शतमिषा नक्षत्र में प्रवेश करेगा। भारतीय देवी पुराण, दुर्गा सप्तमी और विश्वसार तंत्र के अनुसार इस दिन यह संयोग 'देवी दुर्गाष्टोत्रर शतनाम स्तोत्रम' को सिद्ध करने के अति उत्तम एवं दुर्लभ है। यह दुर्लभ संयोग 40 वर्षों बाद शिवरात्रि के बाद आ रहा है।
उन्होंने इस दिन 'भौमावास्या निशामते चन्द्रे शतभिषा गते' मंत्र को सिद्ध करने के बारे में बताया कि इस मंत्र के सिद्धिकरण का पहला आयोजन वर्ष 1968 में इंदौर के मरीमाता चौराहे पर किया गया था। इस मंत्र के श्लोक की विशेषता यह है कि इसमें कोई विनियोग नहीं है और न कोई छंद है। इसके रचियता साक्षात परमेश्वर हैं, इसलिए यह मंत्र स्वयं सिद्ध माना जाता है।
पंडित कुलकर्णी ने बताया कि शैव पंथ में भगवान शिव का विवाह माघ मास की महाशिवरात्रि को हुआ है। देवी पार्वती जो स्वयं माँ दुर्गा हैं के प्रसन्न होने एवं सिद्धि प्राप्ति के लिए मरागपति ने अष्टोत्रर शतनाम स्तोत्र की माला तैयार कर शिवजी को अर्पण की थी।
इस स्तोत्र को सिद्ध करने की पूजन विधि श्रीयंत्र निर्माण और दुर्लभ योग का श्री विश्वसार तंत्र ग्रंथ में उल्लेखित है। श्रीयंत्र निर्माण में 8 ग्राम सोना, 16 ग्राम चाँदी और 32 ग्राम ताँबे का उपयोग किया जाता है।