sawan somwar

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

गीता पढ़ाना संविधान के खिलाफ नहीं

Advertiesment
हमें फॉलो करें गीता
तिरुवनंतपुरम , बुधवार, 6 अगस्त 2014 (16:25 IST)
तिरुवनंतपुरम। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश एआर दवे द्वारा स्कूलों में गीता पढ़ाए जाने की बात का समर्थन करते हुए आरएसएस के एक प्रमुख विचारक ने बुधवार को कहा कि गीता सिर्फ धार्मिक ग्रंथ नहीं है, यह एक उत्कृष्ट आध्यात्मिक और दार्शनिक कृति भी है। इसके साथ ही उन्होंने गीता को ‘राष्ट्रीय पुस्तक’ घोषित करने की भी अपील की।

प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू ने न्यायाधीश दवे के विचारों पर आपत्ति जताई थी। इस मुद्दे पर आरएसएस समर्थक सांस्कृतिक मंच भारतीय विचार केंद्रम के निदेशक पी. परमेश्वरम ने कहा कि गीता ने कई शताब्दियों से भारत पर गहरा प्रभाव डाला है।

उन्होंने कहा कि जिन्होंने एक बार भी भगवद् गीता पढ़ी होगी, वे समझेंगे कि यह एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है। किसी भी अन्य किताब का इतना व्यापक प्रसार नहीं है। गीता की तरह कोई भी अन्य किताब इतनी बड़ी संख्या में व्याख्याओं के साथ प्रकाशित नहीं हुई है।

परमेश्वरम ने एक बयान में कहा कि इसका प्रभाव समय और स्थान से परे है। यह किसी भी प्रखर मस्तिष्क के लिए ज्ञान का खजाना है और इसका प्रभाव शाश्वत है। महात्मा गांधी जैसी शख्सियत ने गीता को अपनी मां बताया था।

उन्होंने कहा था कि उन्हें जब भी उलझन या दुख महसूस होता है, वे गीता की शरण लेते हैं। गांधी ने हमारी स्वतंत्रता के संघर्ष को निर्णयात्मक ढंग से प्रभावित किया था।

परमेश्वरम ने कहा कि उच्चतम मानवीय मूल्य सिखाने वाली गीता हमेशा से विश्वभर में तेज गति से गिरते मूल्यों का एक हल रही है। गीता को ‘भारत की राष्ट्रीय पुस्तक’ घोषित करने की अपील करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान की मूल प्रति, जिस पर संविधान सभा के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर हैं, उसमें ‘गीतोपदेश’ की तस्वीर थी।

उन्होंने पूछा कि जिस किताब को संविधान से सहमति मिली हो, उसे पढ़ाया जाना असंवैधानिक कैसे हो सकता है?

न्यायाधीश एआर दवे ने शनिवार को कहा था कि भारतीयों को अपनी प्राचीन परंपराओं की ओर लौटना चाहिए और महाभारत एवं भगवद् गीता जैसे ग्रंथों की जानकारी अपने बच्चों को छोटी उम्र से ही देनी चाहिए। (भाषा)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi