चेन्नई। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की ओर से संस्कृत को बढ़ावा देने के मकसद से स्कूलों के लिए जारी परिपत्र को लेकर तमिलनाडु में खड़ा हुआ राजनीतिक विवाद कोई नई बात नहीं है, क्योंकि 1949 में संविधान सभा में राज्य ने संस्कृत और हिन्दी का खुलकर विरोध किया था।
मद्रास का प्रतिनिधित्व कर रहे टीएम रामलिंगम चेत्तियार ने 13 सितंबर 1949 को संविधान सभा में कहा था कि हमें खुद पर इसका गर्व रहा है कि हमारा संस्कृत से कोई संबंध नहीं है।
उन्होंने कहा था कि हम यह दावा नहीं करते कि तमिल संस्कृति से निकली अथवा किसी तरह से भी संस्कृत पर आधारित भाषा है। हम संस्कृत के मिश्रण के बगैर अपनी भाषा को जितना शुद्ध रख सकते हैं उसका प्रयास कर रहे हैं। यह उल्लेख ‘कांस्टीट्यूएंट एसेंबली डिबेट्स, वॉल्यूम 9’ में किया गया है।
संविधान सभा में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में राष्ट्रीय, आधिकारिक भाषा के सवाल पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए चेत्तियार ने कहा था कि भाषा का सवाल बहुत महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि यह राजधानी के सवाल से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। ...अगर आप इसे थोपने जा रहे हैं ...तो इसके बहुत बुरे नतीजे होंगे।
चेत्तियार ने संविधान सभा में कहा था कि हमने देवनागरी लिपि में हिन्दी को आधिकारिक भाषा स्वीकार किया है। आप राष्ट्रीय भाषा शब्द का इस्तेमाल नहीं कर सकते, क्योंकि हिन्दी, अंग्रेजी या किसी दूसरी भाषा के मुकाबले हमारे लिए उपयोग के तौर पर ज्यादा राष्ट्रीय नहीं है। हमें अपनी खुद की राष्ट्रीय भाषाएं मिली हुई हैं।
दिलचस्प बात यह है कि चेत्तियार के बोलने से पहले ओडिशा के लक्ष्मीनारायण साहू ने कहा था कि जहां तक संस्कृत को राष्ट्रीय भाषा के तौर पर स्वीकार करने की बात है तो अगर मेरे दक्षिण भारतीय साथी और दूसरे संस्कृत को स्वीकार कर लेते हैं तो मुझे आपत्ति नहीं होगी तथा मैं भी इसे स्वीकार कर लूंगा।
बांग्ला को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने की मांग से जुड़े संशोधन का हवाला देते हुए साहू ने कहा था कि मैं उड़िया के लिए भी कुछ दावा कर सकता हूं, जो बांग्ला से भी ज्यादा पुरानी भाषा है। (भाषा)