कभी-कभी अपनों से स्नेहवश कुछ लेना या उन पर भावनात्मक रूप से आपका निर्भर होना उचित होने के साथ-साथ आपकी अच्छाई को भी दर्शाता है
|
|
कर रहा है। जबकि सच्चाई यह है कि जीवन में कई क्षण ऐसे आते हैं जब आप अपनों को खोजते हैं, उनके साथ के लिए बेचैन होते हैं, अतः आपकी यही कोशिश रहनी चाहिए कि शुरू से ही सबके साथ जुड़कर रहें। मेरे पास क्या कमी है? या कौन-सा मैं किसी पर निर्भर हूँ जो औरों का साथ चाहिए, ऐसा कदापि ना सोचें। मुझे एक छोटी सी घटना याद आ रही है। मेरी सहेली प्रिया जो काफी संपन्न है,उसके भतीजे की शादी थी। घर में उत्सव होने के कारण उसने खूब खरीददारी की व सभी कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया मौज-मस्ती भी की। भाई-भाभी ने भी जो ननद का हक बनता था देकर सभी नेग पूरे किए, फिर भी प्रिया ने भाई से अपनी पसंद की कुछ चीज लेने की इच्छा जाहिर करते हुए मजाकिया लहजे में कहा- 'अकेले तुम ही लोग मजे नहीं लोगे। मैं भी बुआ हूँ और मेरा बराबर का हक है कि अपने भतीजे की शादी में तुमसे खूब माँगकर अपने अरमान पूरे करूँ।'
अब माँगने से प्रिया छोटी या उसका ओहदा तो कम नहीं हो गया बल्कि इसके विपरीत उसके घरवालों को जरूर लगा कि आज भी यह उतनी ही अपनी है जितनी पहले थी, तभी तो इसने स्नेह जताया और मायके में अपनी उपस्थिति का अहसास दिलाया।
यह बहुत अच्छी बात है कि आप एक उम्र के बाद आत्मनिर्भर हो किसी से कुछ नहीं लेते हैं या किसी पर आपका कोई कर्ज भी नहीं है, परंतु कभी-कभी अपनों से स्नेहवश कुछ लेना या उन पर भावनात्मक रूप से आपका निर्भर होना उचित होने के साथ-साथ आपकी अच्छाई को भी दर्शाता है कि आज सब कुछ होते हुए भी आपमें विनम्रता व व्यवहार कुशलता वही की वही है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमेशा नहीं पर जरूरत होने पर जिन्हें आप अपना समझते हैं उनकी सहायता लेना या उन पर आश्रित हो उनको दर्शाना कि आप हमारे काम नहीं आएँगे तो कौन आएगा 'यह गलत नहीं है। इससे तो आपसी दूरियाँ कम हो, संबंधों में मिठास आती है। याद रखिए जीने का मजा अकेले में नहीं वरन् अपनों के साथ ही है।