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कैसा हो जीवन-साथी

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'जरूरत है... जरूरत है... जरूरत है... एक शिरीमती की, कलावती की...' चिल्लाते वक्त शायद किशोर कुमार एक मजाकिया गीत से ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहते होंगे। ये सचाई भी है कि हर मनुष्य (चाहे स्त्री हो या पुरुष) कभी भी संपूर्ण नहीं हो सकता। लेकिन हाँ, अपने गुणों से सबका दिल जीतने और अपने मीठे व्यवहार से सब पर छा जाने वाले व्यक्ति को सभी पसंद करते हैं। यह बात हर लाइफ पार्टनर (पुरुष-स्त्री दोनों) पर लागू होती है। लेकिन आज एक पुरुष की कलम से ही जानिए, वे जीवन-संगिनी के रूप में एक स्त्री से क्या चाहते हैं।

एक लड़की के लिए उसका विवाह बेहद महत्वपूर्ण क्षण होता है। अपने माता-पिता के साथ जीवन का पूर्वार्ध बिताने के पश्चात जब वह किसी की जीवन-संगिनी बनकर उसके घर आती है तो निश्चित रूप से उससे कुछ तो अपेक्षाएँ रहती ही हैं, जिन पर खरा उतरने के लिए उसे एक आदर्श 'जीवन-संगिनी' का दायित्व निभाना होता है। उसकी इस भूमिका पर ही घर की समृद्धि व सुख-शांति काफी हद तक निर्भर रहती है। कहा जाता है कि हर सफल व्यक्ति की सफलता के पीछे स्त्री का हाथ होता है। अतः आप एक आदर्श 'जीवन-संगिनी' साबित हो सकती हैं यदि आप हर कदम पर अपने हमसफर का साथ देती हैं और परिवार में सामंजस्य बनाए रखती हैं। आइए जानें, कैसे-

* आर्थिक आधार पर अपने पति की औरों से तुलना आपके वैवाहिक जीवन में जहर घोल सकती है। अतः पैसे को कभी भी सुख और समृद्धि का आधार मत समझिए। पैसे से 'सोने' का बिस्तर तो खरीदा जा सकता है परंतु नींद नहीं। बेहतर होगा, आप अपने पति की जिम्मेदारियों और मजबूरियों को समझें और यदि हो सके तो उनकी समस्याओं को कम करने का प्रयास करें। उनके काम में हाथ बँटाएँ। अगर आप पढ़ी-लिखी हैं तो आर्थिक सहयोग देकर उनके तनावों को कम कर सकती हैं।

आपका भावनात्मक नैतिक और आर्थिक सहयोग उन्हें आश्वस्त करेगा कि उनका जीवनसाथी दुःख-सुख में उनके साथ है। सबसे बड़ा सहयोग है भावनात्मक संबल जो एक पति को उसकी जुझारू एवं सुलझे हुए विचारों वाली पत्नी ही दे सकती है। माँ, बहन के रिश्ते अपनी जगह अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और केवल आपकी उपस्थिति उनकी रिक्तता की पूर्ति नहीं कर सकती। अतः आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि उनके भी अपने माता-पिता हैं, भाई-बहन हैं, जिनकी देखभाल उन्हें करना है। ऐसी स्थितियाँ नहीं आने दें कि उनके परिवार के लोग स्वयं को उपेक्षित महसूस करें और इस उपेक्षा का कारण आपको बनाया जाए।

* वर्तमान युग में संयुक्त परिवारों के विघटन एवं रिश्तों के रेतीले हो जाने का एक बहुत बड़ा कारण यह है कि विवाह के पश्चात अपनी अलग गृहस्थी बसाने का विचार मस्तिष्क पर हावी होता जा रहा है। भौतिक प्रतिस्पर्धा, आधुनिक चकाचौंध और अधिक से अधिक वस्तुओं का संग्रह कर आरामदायी जीवन बिताने की चाह में हम अपने रक्त संबंधों तक को भूलते जा रहे हैं। विवाह के पश्चात अपने पति के माता-पिता के प्रति उपेक्षा का भाव ही वृद्धाश्रमों की संख्या में बढ़ोतरी कर रहा है। इसलिए बेहतर होगा कि आप भी अपनी सभी आवश्यकताओं में संतुलन बनाए रखते हुए परिवार को संगठित करके चलें। उसे बिखरने से बचाएँ।

* अपने पति की योग्यता और उनकी क्षमताओं की तुलना औरों से करना स्वयं आपके हित में नहीं है। हो सकता है कि आपके पति का बचपन अत्यंत अभावों एवं संघर्ष में बीता हो और आज वे जिस मुकाम पर हैं, उसके पीछे उनके माता-पिता का अगाध परिश्रम रहा हो। स्वयं आपके पति भी संघर्षों से जूझकर व कठोर परिश्रम कर वर्तमान पद पर पहुँचे हों। ऐसी स्थिति में उनकी तुलना अन्य से करना उनके स्वाभिमान को ठेस पहुँचा सकता है। आपके 'वो' जैसे भी हैं, उन्हें उसी रूप में स्वीकारें।

आपसी सामंजस्य, बुद्धिमत्ता एवं सूझबूझ से गृहस्थी की गाड़ी को आगे बढ़ाएँ। उनके प्रयासों की प्रशंसा करें और कंधे से कंधा मिलाकर गृहस्थी को सुख व ऐश्वर्ययुक्त बनाने में उनका साथ दें। हाँ, जिम्मेदारियों में साझापन और विचारों में सामंजस्य बनाए रखना पति-पत्नी दोनों का काम है। आपके उक्त गुण हो सकता है, अन्य लोगों को भी प्रेरित करें।

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