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परिवार की शान है बुजुर्ग

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गायत्री शर्मा

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परिवार की शान कहे जाने वाले हमारे बड़े-बुजुर्ग आज परिवार में अपने ही अस्तित्व को तलाशते नजर आ रहे हैं। तिनका-तिनका जोड़कर अपने बच्चों के लिए आशियाना बनाने वाले ये पुरानी पीढ़ी के लोग अब खुद आशियाने की तलाश में दरबदर भटक रहे हैं। ऐसे में इनका ठिकाना बन रहे हैं वृद्धाश्रम, जहाँ इन्हें रहने को छत और खाने को भरपेट भोजन मिल रहा है।

बस यहाँ कमी है तो उस औलाद की, जिन्हें इन माँ-बाप ने अपना खून-पसीना एक करके पढ़ाया-लिखाया था परंतु आज उसी ने इन्हें दर-दर ठोकरें खाने को मजबूर कर दिया है।

क्या यही संस्कार देते हैं माँ-बाप अपने बच्चों को, जिसके कारण बुढ़ापे में उन्हें भरपेट भोजन के लिए भी अपने बच्चों की सेवा-चाकरी करनी पड़ती है और घर के मालिक को अपने ही घर में नौकर या तिरस्कृत व्यक्ति की तरह जीवन गुजारना पड़ता है?

इसमें दोष हमारा नहीं है बल्कि उस पश्चिमी संस्कृति का दोष है, जिसका अंधा अनुसरण करने की होड़ में हम लगे हुए हैं। बगैर कुछ सोचे-समझे हम भी दूसरों की देखा-देखी एकल परिवार प्रणाली को अपनाकर अपनों से ही किनारा कर रहे हैं।

ऐसा करके हम अपने हाथों अपने बच्चों को उस प्यार, संस्कार, आशीर्वाद व स्पर्श से वंचित कर रहे हैं, जो उनकी जिंदगी को सँवार सकता है। याद रखिए किराए से भले ही प्यार मिल सकता है परंतु संस्कार, आशीर्वाद व दुआएँ नहीं। यह सब तो हमें माँ-बाप से ही मिलती हैं।

समझने की जरूरत है एक-दूसरे को :
युवा पीढ़ी और बुजुर्गों के बीच दूरियाँ बढ़ने का एकमात्र कारण दोनों की सोच व समझ में ‍तालमेल का अभाव है। दुनिया देख चुके अपने बड़े-बुजुर्गों को दरकिनार कर आजकल के युवा अपनी नई सोच से अपनी जिंदगी को सँवारना चाहते हैं। उनकी आजादी में रोक-टोक करने वाले बड़े-बुजुर्ग उन्हें नापसंद हैं। यही कारण है कि वे उन्हें अपने परिवार में देखना ही पसंद नहीं करते हैं।

युवा पीढ़ी की इस सोच के अनुसार बड़े-बुजुर्गों की जगह घर में नहीं बल्कि वृद्धाश्रमों में है। वहाँ उन्हें उनकी सोच के व हमउम्र लोग मिल जाएँगे, जो उनकी बातों को सुनेंगे और समझेंगे। वहाँ वे खुश रह सकते हैं परंतु ऐसा सोचने वाले युवाओं को क्या पता है कि हर माँ-बाप की खुशी अपने परिवार में और अपने बच्चों में होती है। उनसे दूर रहकर भला वो खुश कैसे रह सकते हैं?

वृद्धाश्रम में पसरा दर्द :
वृद्धाश्रम, जिसका नाम सुनने में भले ही अच्छा लगे किंतु यहाँ का जीवन भी सन्नाटे से पसरा है। यहाँ हर तरफ सन्नाटा है उस तूफान के कारण, जो यहाँ रहने वालों की जिंदगी में भूचाल बनकर आया था और उन्हें अपनों से दूर कर गया। यहाँ की सुनसान रातों में भी अपनों से बिछुड़ने के दर्द की सिसकियाँ सुनाई पड़ती हैं।

यहाँ के हर हँसते चेहरे की पीछे दर्द में डूबा एक भावुक इंसान छिपा है, जो प्यार का स्पर्श पाने मात्र से ही आँसू के रूप में छलक उठता है। अपनी जिंदगी की हर एक घड़ी में अपनों को याद करने वाले बुजुर्ग कोई पराए नहीं बल्कि हमारे अपने हैं, जिन्हें हमने घर से बाहर धकेलकर वृद्धाश्रमों में पटक दिया है।

परिवार की शान है बुजुर्ग :
बड़े-बुजुर्ग परिवार की शान है वो कोई कूड़ा-करकट नहीं हैं, जिसे कि परिवार से बाहर निकाल फेंका जाए। अपने प्यार से रिश्तों को सींचने वाले इन बुजुगों को भी बच्चों से प्यार व सम्मान चाहिए अपमान व तिरस्कार नहीं। अपने बच्चों की खातिर अपना जीवन दाँव पर लगा चुके इन बुजुर्गों को अब अपनों के प्यार की जरूरत है। यदि हम इन्हें सम्मान व अपने परिवार में स्थान देंगे तो शायद वृद्धाश्रम की अवधारणा ही इस समाज से समाप्त हो जाएगी।

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