मेरे मायके में ऐसा होता है
मायके की प्रशंसा तकलीफदेह
कहते हैं हम जिस परिवेश में रहते हैं उसी के अनुसार हमको ढल जाना चाहिए। यह बात सभी पर लागू हो सकती है किंतु उन महिलाओं पर लागू नहीं हो सकती, जो ससुराल की आरामदेह जिंदगी में भी अपने मायके की तारीफ करती रहती हैं।
यह स्त्री सुलभ स्वभाव ही है कि उनसे मायके का मोह कभी नहीं छूटता। पति के घर में भी वह हर वक्त अपने माँ-बाप व भाई-बहन की तारीफ करती रहती हैं। अपने मायके की यह अति प्रशंसा उसके लिए तब नुकसानदेह हो जाती है, जब वह ससुराल में विवादों का कारण बन जाती है।
जब मायकेवाले बेटी के ससुराल आते हैं। वैसे ही उसका रवैया बदल सा जाता है। हर रोज पति की देखभाल करने वाली पत्नि उस दिनों मानो अपने पति को भूल सी जाती है।
बार-बार मायके के ताने मारना, पति पर ध्यान नहीं देना, मायके जाने की जिद करना .... ये सब वे छोटी-छोटी बाते हैं, जो दांपत्य जिंदगी में धीरे-धीरे जहर घोलते हुए भविष्यगामी विवादों का कारण बनाती है।
हर व्यक्ति सर्वगुण संपन्न हो, यह आवश्यक नहीं है। हर किसी में कोई न खूबी होती है, जो उसे दूसरों से बेहतर बनाती है।
आप भी यदि अपने पति की तुलना अपने भाई या पिता से करेगी तो हमेशा आपको अपने मायके वाले ही बेहतर लगेंगे।
पुरुष हर चीज बर्दाश्त कर सकता है पर अपनी तुलना नहीं। हर व्यक्ति का अपना स्वाभिमान होता है, जिससे समझौता करना उसे नागवार गुजरता है। हर काम में आपके मायकेवाले बेहतर हों, यह जरूरी नहीं।
तुलना करने से बेहतर है आप अपने पति को व उनकी आदतों को पहचानें। पति के अच्छे कामों पर उनको प्रोत्साहित करने के बजाय आप उनके सामने अपने मायकेवालों की शेखी बघारकर उन्हें निरुत्साहित कर देती है, जिससे पुरुष का मनोबल गिरता है।