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ऐसी होती है माँ

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गायत्री शर्मा

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कोई कहता है माँ ऐसी होती है, कोई कहता है वैसी होती है परंतु सही अर्थों में माँ का अर्थ पूछना है तो उनसे पूछो जिनके जीवन में आज माँ का सुख नसीब नहीं है। उनकी आँखों में माँ की महज एक छवि है, देखने को दिवंगत माँ की तस्वीर और गम बाँटने को माँ की यादों में निकले आँसू।

माँ औरत का एक ऐसा रूप है, जिसके समान आपकी बीवी, बहन, मौसी, नानी, दादी सब हो सकती है परंतु वो माँ के समान होते हुए भी 'माँ' नहीं हो सकती है। वो माँ ही है जिसकी डाँट-फटकार में भी प्यार होता है और जिसके प्यार में सारा संसार होता है। आज की दुनिया में पैसों के बदले आपको हर चीज मिल जाएगी पर माँ नहीं मिल सकती है। उसकी परवरिश और उसके द्वारा दिए गए संस्कार नहीं मिल सकते।

उसे गाली देना आसान है, उस पर हाथ उठाना आसान है पर उसके समान बन के दिखा पाना बेहद ही मुश्किल है। घर में पति और बेटे-बहुओं के बाहर जमाने के हर किसी के तिरस्कार को सहते हुए भी वो बस इतना ही कहती है। 'हे ईश्वर, मेरी उम्र भी मेरे बच्चों को दे देना।'

अपने आँचल से ढँककर बच्चे को दूध पिलाने वाली माँ ये जरूर भूल जाती होगी कि आज उसने खाना खाया है या नहीं परंतु उसे ये जरूर याद रहता है कि मेरा बच्चा भूखा है। नौ माह तक गर्भ में संतान को पालने वाली माँ ना जाने कितनी शारीरिक तकलीफ सहती है परंतु अपनी उम्र के उत्तरार्द्ध में जब उसी गर्भ पर बेटे की लात पड़ती है या आपकी बातें उसके दिल को दुखाती है तो वो खामोश रहकर यही कहती है 'मेरे बेटे ने ये सब गुस्से में किया होगा। वो बहुत अच्छा है।'

इन सभी बातों का जिक्र करने के पीछे मेरा बस एक ही मकसद है और वो है 'औरत को सम्मान देना सीखो।' वो कोई भेड़ बकरी नहीं है वो तो आपकी जन्मदात्री माँ है जिसकी जगह आपके घर, परिवार व दिल में होनी चाहिए न कि वृद्धाश्रम में।

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