Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

डोर रिश्तों की : जीवन संध्या की मिठास

हमें फॉलो करें डोर रिश्तों की : जीवन संध्या की मिठास
webdunia

डॉ. छाया मंगल मिश्र

जैसे जैसे जीवन छोटा होता जा रहा है खालीपन बढ़ता जाता है। जिनके घर परिवार हैं उनके पास रिश्तों की मिठास है। पर जो अकेले हैं उनको जीवन काटना वो भी इस जीवन संध्या में कठिन सा हो चला है। और यदि आपका स्वभाव मस्त ,स्पष्ट और पारदर्शी के साथ साथ अपनत्व भरा हो तो कोई कभी भी मिले प्यार कम नहीं होता। 
 
लगभग बीस साल बाद जोड़े से मोसेरे भैय्या-भाभी का घर पर आना और पूरे अधिकार से हर बात को मानना मनाना मुझे खूब खुशी दे गया। शायद ये उम्र के तकाजे हैं जो हमें बताते हैं कि “भाई और बहन व उनका परिवार हमारे माता-पिता द्वारा छोड़े गए सबसे कीमती उपहार होते हैं”। 
 
 जब हम छोटे थे तो भाई-बहन हमारे सबसे करीबी साथी हुआ करते थे। हर दिन, हम साथ-साथ खेलते थे, शोर-शराबा करते थे और बचपन का सारा समय एक साथ बिताते थे। ये हमारे इस धरती के प्रथम रिश्तों के बंधन की कड़ी हैं। आजकल आना जाना न भी कर पाएं तो फोन व वीडियो कॉल के माध्यम से बढ़िया बात हो जाती है....

सभी जन प्रेम पूर्वक संपर्क में रहें, किसी के घर में ज्यादा घुसे नहीं, ताना मारे नहीं, जब तक वो सुझाव न मांगे ना बोलें। मस्त रहे व मस्ती में रखे। किसी के सुख से दुखी न हों। बराबरी न करें। किसी साईकेट्रीस्ट की जरुरत नहीं पड़ेगी। 
 
बड़े होने पर, हमने अपना परिवार शुरू किया, अपना अलग जीवन व्यतीत किया और आमतौर पर परस्पर बहुत कम मिलते। हमारे माता-पिता ही एकमात्र कड़ी थे जो हम सभी को जोड़ते थे। हर चीज हर बात साझा किया करते थे। अच्छी-बुरी आदतों से कभी कोई शिकायतें ही नहीं होतीं थीं। सर पर बड़ों का हाथ था। फिर जैसे जैसे बड़े और संपन्न हुए दिमाग ख़राब होते गए। पुराने रिश्तों की जड़ों में कीड़े लगने लगे। आज मैंने कई परिवार टूटते बिखरते देखे हैं आश्चर्य ये है कि इनमें से अधिकतर पढ़े-लिखे लोगों के ही हैं जो दिखावे, जलन, आडम्बर और अहंकार के मारे हैं या फिर बड़ों-छोटों के दुर्व्यवहार के शिकार। 
 
ये जो अहम होते हैं न बड़े बेरहम होते हैं
 
जब हम धीरे-धीरे बूढ़े हो जाते हैं बच्चे छोड़ कर चले जाते हैं या उनकी गृहस्थी में रम जाते हैं। तब अपनों की याद आती है। फिर जो आपने बोया है उसी की फसल आपके बच्चे आपको भी लौटाते हैं। हमेशा इतने कड़वे और कंटीले न बनें कि खुद के गले में ही फंस जाओ। भाई भाभी से मिले भले ही बरस हो गए थे पर पूरे बीस बरस एक साथ जी लिए। शायद यही जीवन का रस है। जो बड़े हैं उनमें माफी और छोटों को लिहाज की समझ होती है तब कहीं भी अकेलेपन की घुसपैठ नहीं हो पाती।  
 
हमारी प्राचीन भूली-बिसरी सांस्कृतिक विरासत है कि हम घर से लौटने/जाने वाले की पीठ होते ही धड़ाम भड़ाक दरवाजे बंद नहीं करते। कुछ पलों तक किवाड़ पर रुकते हैं। खुली सांकल किसी के लौटने की एक उम्मीद होती है। अगर कोई अपना हमसे दूर जा रहा है तो हमे उसके लौटने की उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए. उसका इंतजार जीवन के आखिरी पल तक करना चाहिए। आस और विश्वास से रिश्तों की दूरी मिट जाती है, इसीलिए दिल की उम्मीद के साथ दरवाजे की सांकल भी खुली रखी जाती है ताकि जब भी कोई लौट कर वापस आए तो उसे खटखटाने की जरूरत नहीं पड़े, वो खुद मन के घर में आ जाए। 
 
जीवन में कुछ बातें हमेशा हमे सीख देती है, कि कोई रिश्तों से नाराज कितना भी हो, उसके लिए दिल के दरवाजे बन्द मत करो. "पर ये व्यावहारिक तभी तक है जब तक कि रिश्ते आपके खून न चूसें।  आजकल चाटुकारिता, स्वार्थ, भाई भतीजावाद, परिवारवाद, स्व-प्रचार, आत्ममुग्धता में हम रिश्तेदार भी राजनेताओं को कड़ी टक्कर दे रहे हैं(कुछ अपवाद हर जगह होते हैं)। जब कभी उसे आपकी याद आएगी, उसे आपके पास आना हो तो वो हिचके नही, मस्ती में पूरे विश्वास से बिना कुंडी खटकाए दिल के अन्दर आ जाए आपकी जीवन संध्या को और खूबसूरत और सुहानी कर जाए। 
webdunia

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

शुरुआत में ही दिल के रोग को ट्रेक कर लेगा ये नया डिवाइस