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फादर्स डे : तपती धूप में उन्हें छांव बनते देखा है

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प्रीति सोनी

कहते हैं लोग, मां का दिल पिघलता है... पर पिता कभी बदलते नहीं। लेकिन पिता को मैंने बदलते देखा है। संतान के जन्म से ही पति से पिता हो चुके उस व्यक्तित्व को कदम-दर-कदम मैंने चलते देखा है। उनके इस किरदार को परत-दर-परत उभरते देखा है।
 
पिता और संतान का रिश्ता, तभी से कल्पनाओं और भावनाओं की छांव में पल्लवित होने लगता है, जब से मां के गर्भ में हमारे अस्तित्व के होने की आहट सुनाई देती है। मां शारीरिक और मानसिक रूप से जुड़ती है तो पिता भी अपनी आत्मीयता की छांव उड़ेल देता है, भावी सपनों की जमीन पर।
 
पिता बदलता है हर पल, अपनी संतान के साथ...बढ़ता है हर-पल उसकी उम्र के साथ...और बदलता है उसकी जरूरतों के साथ-साथ...। बचपन की खेलती यादों के बीच ही जरा जाकर देख लीजिए...क्या पिता, आपके साथ सिर्फ एक पिता थे? याद आ जाएंगे वो तमाम उछलते, कूदते, मस्ती में खिलखिलाते लम्हें, जो पापा के साथ मिलकर की शैतानियों में आज भी महक रहे हैं। जब मम्मी की चिंताओं के बीच, हमारी मस्ती भरी हरकतों पर रोक लग जाती...तो पापा से सिर्फ ग्रीन सिग्नल ही नहीं मिलता...बल्कि पापा के साथ ही चलने लगती मस्ती की छुक-छुक गाड़ी। बचपन में बच्चे थे पापा भी हमारे साथ, चिंता की लकीरों के बीच भी।
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जब बढ़ते गए हम, तो सिखाते रहे वो, अच्छी-बुरी बातें और कई कामों को करने का तरीका-सलीका। और बढ़े हम, तो बने दोस्त भी। हां रोक-टोक भी की, डांटा भी...लेकिन खड़े रहे साथ, हर मुश्किल एक्जाम में। जब और बढ़े हम, तो बांधा भी उन्होंने...पर पीठपीछे चिंता में जागते रहे वो भी। हम बढ़ रहे थे...वो बुन रहे थे, हमारे सपनों का आशियां...। हमारी पसंद-नापसंद के बीच पापा को मैनें टहलते देखा है। हां, पापा को मैंने बदलते देखा है...।  
 
पढ़ने-लिखने को जब चुना हमने नया आसमान, तो हौंसला बढ़ाते रहे, पर न जताई अपने मन की फिक्र, चिंता...सख्ती से दी हिदायतें, हिफाजत के लिए। हर परीक्षा में ज्ञान हमारा और दुआएं उनकी साथ चलती रहीं। बेटा जब पहुंचा शिखर पर, गर्व से उनका ऊंचा हुआ सर...पर बेटी के जाने पर मैंने उन्हें सिसकते देखा है। हां पापा को मैंने बदलते देखा है...। 
 
हम बढ़ चुके थे, पर पिता अब रुक गए थे। बच्चों से एक उम्र के बाद बढ़ना, सही जो न लगा उन्हें। तक सब छोड़ दिया हम पर...सारी बागडोर, सारी उम्मीदें, सारी जिम्मेदारियां और ढेर सारी दुआएं...मगर पीछे खड़े रहे अब भी, बिन बताए। नादानी, परेशानी में संभालते मैंने उन्हें देखा है। तपती धूप में उन्हें छांव बनते देखा है...  हां, पापा को मैंने बदलते देखा है...।

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