Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

राखी पर घर आया अजनबी शख़्स

हमें फॉलो करें राखी पर घर आया अजनबी शख़्स
webdunia

देवेंद्रराज सुथार

नेहा को पिछले कुछ दिनों से एक अजनबी शख़्स घूर रहा था। दफ़्तर जाते, बाज़ार में सब्ज़ी लेते या सुबह डेयरी वाले के यहां दूध लेते, वह शख़्स उसे मिल ही जाता। नेहा को अब उस शख़्स पर शक होने लगा था। इससे वह कुछ डरी सहमी-सी रहने लगी थी। आज रक्षाबंधन का त्योहार था। उस शख़्स को अपने घर के दरवाजे पर खड़ा देख नेहा ने डर के मारे मां को आवाज़ देकर बुला लिया।
 
मां ने हिचकिचाते हुए पूछा- आपको पहचाना नहीं?
 
शख़्स- जी, मेरा नाम मयंक है। मैं आपके आगे वाली गली में रहता हूं। अभी कुछ दिनों पहले ही यहां की बैंक में मेरा तबादला हुआ है। आपके पड़ोस में रहने वाले शर्माजी मेरे मित्र हैं।
 
दरअसल, मैंने कुछ दिनों पहले उनसे एक बहन बनाने के बारे में बात की थी। तब उन्होंने मुझे नेहा के बारे में बताया और कहा कि उसका कोई भाई  नहीं है। मैंने सोचा कि क्यूं न आज के दिन नेहा से राखी बंधवाकर उसे मैं अपनी बहन बना लूं। मुझे एक बहन मिल जाएगी और नेहा को एक भाई। यदि आपको कोई आपत्ति ना हो तो! मां ने मयंक को हंसते हुए घर के भीतर बुला लिया। अब नेहा के चेहरे से डर ग़ायब हुआ और उसकी मुस्कान बता रही थी कि उसने अजनबी शख़्स को अपना भाई स्वीकार कर लिया था।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कविता : युवा समाज को बदलते जा रहे हैं