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relationship : कहीं आप भी 'होम ब्रेकर' तो नहीं...आइए 'होम मेकर' बनें

हमें फॉलो करें relationship : कहीं आप भी 'होम ब्रेकर' तो नहीं...आइए 'होम मेकर' बनें
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डॉ. छाया मंगल मिश्र

सोशल मीडिया पर दिन रात नई-नई बातें, खबर, बयानबाजियां पढ़ने, देखने, सुनने नजर आती हैं. ऐसी ही एक बात ने ध्यान आकर्षित किया कि मोना कपूर जो बॉलीवुड फिल्म मेकर बोनी कपूर की पहली पत्नी थीं, श्री देवी को ‘होम ब्रेकर’ कहा करती थीं मतलब ‘घर तोड़ने वाली’। 
 
 बात तो चुभने वाली है और ध्यान रखने वाली भी। पर क्या हम जिस परिवेश और समाज में जी रहे हैं उसमें सब ‘होम-मेकर’ ही हैं? याने के घर बनाए रखने वाले. घर अपने भी...और दूसरों के भी.
 
ऐसा तो कोई जरुरी नहीं कि दूसरी औरत या माशूका से ही घर टूटते हैं. नहीं...इनके आलावा भी ऐसी बहुत सी वजहें हैं जिनसे जाने अनजाने घर टूटते हैं। वो हम भी हो सकते हैं, हमारे अपने भी और पराए भी। 
 
हमारी सामाजिक व्यवस्था में घर या निवास शरण या आराम की जगह होता है। यह आमतौर पर एक जगह है, जिसमें एक व्यक्ति या एक परिवार अपने आराम और निजी संपत्ति का भंडारण कर सकते हैं। व्यक्ति अपने परिवार के साथ घर में रहता है। आधुनिकतम घरों में स्वच्छता सुविधाओं के संग ही खाना बनाने की व्यवस्था भी होती है। पशु व जानवर भी अपने अपने घरों में निवास करते हैं, चाहे जंगली हों या पालतू पशु। एक भौतिक स्थान के रूप में 'घर' की परिभाषा वह मकान होती है, जहां शरण या आराम की मानसिक या भावनात्मक तृप्ति प्राप्त हो। 
 
 घर उस आवास या भवन को कहते हैं जो किसी मानव के निवास के काम आती हो। घर के अन्तर्गत साधारण झोपड़ी से लेकर गगनचुम्बी इमारतें शामिल हैं। ये बात स्पष्ट है कि भौतिक रूप से हम जिसे मकान कहते हैं सीमेंट, कांक्रीट, रेती, लोहे ,पत्थर, ईंट,चूने से बना खाका होता है, जिसे हम इंसानी रिश्तों से, एहसास और भावनाओं से घर में तब्दील करते हैं। मतलब मकान यदि शरीर है तो घर उसकी आत्मा है। 
 
श्रीमती महेश्वरी के बेटे की शादी बड़ी धूमधाम से हुई थी। पढ़ी-लिखी नौकरीपेशा बहू, अच्छा घर-घराना देख कर लाए थे। सभी बड़े खुश थे। पर लड़की ने पहली रात ही लड़के को कह दिया कि शादी जबरदस्ती की गई है। वो किसी और को पसंद करती है। दाम्पत्य शुरू होने के पहले ही टूट गया। पर ठीक इसका उल्टा वर्मा जी की बेटी के साथ हुआ। वहां लड़के के साथ शादी की जबरदस्ती की गई थी. दोनों ही सन्दर्भ में दो परिवार और दो जिंदगियां बर्बाद होतीं हैं। घर बनाने की जगह हम तोड़ने की तरफ कदम बढ़ा देते हैं। 
 
ऐसा नहीं है की अरेंज मैरिज में ही ऐसा होता है। लव मैरिज में भी शादी के पहले या बाद में इसके प्रभाव होते हैं। शादी के पहले सवार इश्क का भूत जब यथार्थ की कठोरता का सामना करता है न तब निबाह करना सजा हो जाता है। चंद समय की रोमांटिक सपनीली मुलाकातें जो इन्द्रधनुषी सपने दिखाती हैं, जब वो दिन रात का साथ बनतीं हैं तो एक दूसरे की अच्छाईयां भी बुराइयों में बदल जातीं हैं। 
 
 ऐसा ही जयेश के साथ हुआ। पूरे घर से लड़ कर उसने सुनीता से शादी की। सुनीता के घर वाले भी इस शादी के लिए तैयार नहीं थे। दोनों अलग-अलग परिवेश और धर्म से थे। प्यार तो अंधा होता है। सबको मानना पड़ा। सभी उनकी जिद के आगे हार गए। शुरू हुई जीवन यात्रा, झगडे शुरू। जयेश अपने परिवार वालों की सहमति की कीमत सुनीता से वसूल करने लगा। जिसके कारण सुनीता को उसके परिवार वाले अखरने लगे। बात-बात पर दोनों अपने-अपने परिवार वालों के व्यवहार को ले कर लड़ने लगे। सारे कसमें वादे भूल कर, अपने प्यार को दफना कर केवल कोसने लगे। जिस प्यार के लिए उन्होंने घर-बाहर से झगड़ा किया था वो कपूर बन कर काफूर हो चुका था। सिवाय एक दूसरे को नीचा दिखाने के कोई काम नहीं था। दोनों भूल गए थे कि अब उनके साथ दो परिवार भी जुड़े हुए हैं जो उनके प्यार-तकरार की बलि चढ़ रहे हैं। 
 
उनके इस आचरण से दोनों परिवार चाह के भी एकदूसरे के करीब नहीं जाते कि पता नहीं कब उनको लेकर जयेश सुनीता कोई कहानी बना कर लड़ने लग जाए और निर्दोष परिवारों में अशांति फ़ैल जाए। दोनों ही पढ़े-लिखे समझदार हैं पर दाम्पत्य की गरिमा से कोसों दूर.... परिवार बांधने की बजाय उनको धिक्कारना,उनकी हंसी उड़ाना, कमतर समझना इसी खटकरम में उनका समय जाया होने लगा. ‘स्वीट मेमोरेबल मोमेंट’ ‘सेड ट्रेजेडी’ में बदल गए.और घर टूटने लगा। 
 
 भारत में जनगणना के समय नागरिकों को अपनी स्थिति दर्शाने के लिए निम्न विकल्प दिए जाते हैं- अविवाहित, पृथक, तलाकशुदा, विधवा, विवाहित. यह सत्य है कि कुछ महिलाएं अपनी पृथक या तलाकशुदा स्थिति को इन शब्दों के साथ जुडी कलंकपूर्ण स्थिति के कारण सूचित नहीं करती... लेकिन एक अध्ययन के परिणामस्वरूप कुछ महत्वपूर्ण बिंदु प्राप्त हुए हैं-
 
1. भारत में 13.6 लाख लोग तलाकशुदा हैं। यह विवाहित जनसंख्या का 0.24% तथा कुल जनसंख्या का 0.11% है। 
 
2.और भी चौंकाने वाला तथ्य यह है कि पृथक व्यक्तियों की संख्या तलाकशुदा से लगभग तीन गुना है। यह विवाहित जनसंख्या का 0.61% तथा कुल जनसंख्या का 0.29 % है। 
 
3. पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक तलाकशुदा और पृथक हैं। 
 
4. पूर्वोत्तर राज्यों में भारत में अन्यत्र किसी भी स्थान की तुलना में तलाक की दर तुलनात्मक रूप से ज्यादा है। मिजोरम में तलाक की दर 4. 08% के साथ सर्वोच्च है। यह दर नागालैंड (0.088%) की तुलना में चार गुना है जो की तलाक के मामले में दूसरे स्थान पर है।  
 
5. दस लाख जनसंख्या से बड़े राज्यों में गुजरात में तलाक प्रकरणों की संख्या सर्वाधिक है। इसके बाद असम, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल तथा जम्मू और कश्मीर का स्थान है। 
 
6. मेघालय में पृथक के प्रकरण सर्वाधिक है। इसके बाद मिजोरम, सिक्किम, केरल तथा चंडीगढ़ का स्थान है। इन 5 राज्यों में से तीन पूर्वोत्तर भारत में हैं। 
 
शादी टूटने या बढ़ते तलाक की वजहें पारिवारिक, दहेज़, बेमेल जोड़े, निजी मामले, निःसंतानता आदि कोई भी रहते हों पर अब कुछ कारण जो शादी के बाद के प्रेमप्रसंगों से भी आगे हैं. जो इस इन्टरनेट ने बना दिए हैं। 
 
 न जान न पहचान पर तू मेरा जानू-मैं तेरी जान.
 
आभासी दुनिया के रिश्ते कितने खतरनाक होते हैं इनका पता तब लगता है जब ये जानलेवा और घर को तहस नहस करने पर आ जाते हैं।  दिन-रात चैट करना, हदें पार करना, कल्पनाओं में जीना परिवार से दूर ले जाता है। राजेश और वीणा की शादी को अभी एक महीना ही हुआ था कि वीणा चुप और बुझी-बुझी रहने लगी।  हर वक्त उदास और चिढ़ी हुई रहती। पता लगा कि रात में राजेश पूरे समय अपनी गर्ल फ्रेंड्स के साथ लगा रहता है। वो उनकी निजी बातें भी उनको बोलता है। छुप छुप कर उनसे फोन पर लंबी बातें करता है। वो लड़कियां भी उसको अश्लील मैसेज भेजा करती हैं। मालूम हुआ कि वो लड़कियां भी शादीशुदा हैं। तो क्या वो अपने पति को धोखा नहीं दे रहीं? सारी रात या दिन किसी से लगे रहना इतनी फुर्सत कहां से मिलती है इन लोगों को ? शायद इनका जमीर मर चुका होता है। 
 
वीणा के विरोध करने पर राजेश ऑफिस से देरी से आने लगा। कारण पता लगा वो दो घंटे उनसे बात करता और सबूत मिटाने कॉल लिस्ट डिलीट कर देता। पर उसको उनकी इतनी धुन सवार हो गई थी कि अपनी पत्नी को निजी पलों में भी उनके नाम से ही बुलाने लगा। बस फिर क्या था....ये अति वीणा की बर्दाश्त के बाहर थी। वो घर छोड़ कर आ गई। राजेश के मुताबिक वो तो उसकी बहनें हैं, उम्र में भी उससे बड़ी हैं। 
 
 तो क्या आजकल बहन-भाई के रिश्तों की परिभाषाएं बदल चुकीं हैं। बहनें अपनी पति की बगल में लेट कर छोटे भाईयों को अश्लील फोटो, मैसेज, गंदी बातें करतीं हैं और छोटे भाई अपनी बड़ी बहनों को अपनी पत्नी की बगल में सोने का बहाना करते हुए उनका जवाब देते हैं। रंगे हाथों पकड़ लिए जाने पर राजेश का कहना था कि वो लड़कियां उसके परिवार वालों से भी पहले हैं। 
 
 राजेश के परिवार के लोग राजेश की इस हरकत से अनजान थे या बनने का नाटक कर रहे थे। अपने बचाव में उसका कहना था कि जब वो बाहर पढ़ रहा था, जॉब कर रहा था तब कोई भी घर का सदस्य उसकी परवाह नहीं करता था। ये लड़कियां ही उसको समझतीं थीं। इसलिए वो इनके इतने करीब हो गया। 
 
आश्चर्य की बात तो ये है कि जो चर्चाए इनके बीच होतीं थीं वो न तो शालीन थीं, न प्रेरणात्मक, न किसी समस्या का समाधान, न समझाइश. होती थी तो केवल अश्लीलता और पत्नी की निंदा....और उनके इस आनंद ने इनका घर तोड़ दिया। राजेश खुद ही ‘होम ब्रेकर’ बन गया पर कीमत निर्दोष वीणा को भी चुकानी पड़ी। 
 
कई जिंदगियां बर्बाद कर देतें हैं ये ‘होम ब्रेकर’। इन्हें पहचान पाना भी कठिन है. ये किस रूप में, किस रास्ते और किस सदस्य के दिमाग में घुस जाए कह नहीं सकते। नए-पुराने नाजायज रिश्तों का पनप जाना, रिश्तों के अनावश्यक हस्तक्षेप, मर्यादा को लांघना आजकल सामान्य शगल में शुमार हो गया है। सामाजिकता का दायित्व और नैतिकता का पाठ किताबों में ही बंद होने लगे हैं। 
 
ऐसा नहीं है की एक ही पक्ष इस मामले में दोषी हो। कई बार दूसरा और कई बार दोनों ही पक्ष इसके जिम्मेदार होते हैं। इसका एक ही इलाज है कि बच्चों पर नजर रखें, उसे भरपूर प्यार दें, उसकी परेशानियों में उसके साथ खड़े रहें। शांति से उसकी समस्याएं सुनें उसका निदान करें जिससे उसे विश्वास हो कि वो आपके लिए महत्वपूर्ण है। अपनी बात करने में वो झिझके नहीं। आपसे दूरी उसकी जिंदगी में गैरों के प्रवेश को आसान बना देती है। 
 
यदि हम चाहते हैं कि हमारी आगे आने वाली पीढियां चैन और सूकून की खुशगवार जिंदगी गुजारे तो हमें भी उनकी परवरिश और लालन-पालन के ढंग बदलने होंगे। केवल महंगी शिक्षा उन्हें जीने के गुर नहीं सिखा सकती। उसके लिए व्यावहारिक और सामाजिक ज्ञान के साथ-साथ नैतिकता व रिश्तों की मर्यादा का महत्व जानना भी बहुत जरुरी है। जो केवल हम ही उन्हें दे सकते हैं। उन्हें समय दें, दाम्पत्य का महत्व समझाएं।
 
परिवार और समाज में उसकी भूमिका की जिम्मेदारी से अवगत कराएं। एकल परिवार, अकेलापन, अपनों की दूरी इन्हें और तोड़ रही है। जिंदगी का मकसद केवल कमाना और मनोरंजन नहीं है वरन अहसास,प्यार,जज्बात,रिश्ते को समझना और निभाना भी आना चाहिए। 
 
धरती पर निवास करने वाले सभी पशु पक्षियों को भी अपना घर,बच्चे जान से ज्यादा प्रिय होते हैं। वे कभी ना तो अपना नीड़ टूटने देते हैं न बिखरने देते हैं। यदि संकट आ जाए तो कोहराम मचा देते हैं और जान की बाजी लगा देते हैं। प्रकृति के कहर और नियम बातें छोड़ कर कभी कोई भी अपना घर संसार उजाड़ना नहीं चाहेगा न ही किसी को उजाड़ने देगा।  बस इंसान ही बेअदब और नाशुक्रा प्राणी है जो अपनी जिंदगी की प्राथमिकताओं और खुशियों को अपने कर्मों से ही आधुनिकता और विकास के नाम पर छलने से बाज नहीं आता। वक्त है अभी भी सम्हलना होगा... सम्हालना होगा इंसानियत को, प्यार को, रिश्तों को और इनसे बढ़ कर एक उन्नत राष्ट्र की समुन्नत इकाई को। ये हमारा दायित्व है।  आइए मिल कर निभाएं....

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