शास्त्रों के अनुसार पूर्व कर्मों के कारण उत्पन्न होने वाली पीड़ा एवं कष्टों का निपटारा शनि महाराज करते हैं। कहा जाता है कि देवता भी यदि अवतार लेकर पृथ्वी में आते हैं तो उन्हें भी शनि की न्याय व्यवस्था के आगे नतमस्तक होना पड़ता है।
वट सावित्री अमावस्या को शनि जयंती विशेष अनुष्ठान के साथ संपन्न होगी। इस अवसर पर मंत्रों के साथ तैलाभिषेक कर शनि ग्रह को मनाकर सुख शांति प्रार्थना की जाएगी।
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ज्योतिषी कहते हैं कि शनि से घबराने की आवश्यकता नहीं है बल्कि शनि को अनुकूल कर कार्य सिद्ध करने के लिए विधिपूर्वक मंत्र जाप एवं अनुष्ठान जरूरी होते हैं।
वस्तुतः पूर्व कृत कर्मों का फल यदि आराधना के द्वारा शांत किया जा सकता है, तो इसके लिए साधकों को पूरी तन्मयता से साधना और आराधना करनी चाहिए।
शनि मंदिरों एवं हनुमान के मंदिरों में अमावस्या को पूरी निष्ठा के साथ विशेष अनुष्ठान संपन्न किए जाते हैं।
अमावस्या को मंदिरों में प्रातः सूर्योदय से पूर्व पीपल के वृक्ष को जल चढ़ाना तथा दिन में शनि महाराज की मूर्ति पर तैलाभिषेक एवं यज्ञ अनुष्ठानों के द्वारा हवनात्मक ग्रह शांति यज्ञ करने से मनुष्य को अपने पाप कर्मों से छुटकारा प्राप्त होता है।