मौलिक चिंतक, दार्शनिक और प्रखर विचारक के रूप में विख्यात तेरापंथ धर्मसंघ के दसवें आचार्य महाप्रज्ञ का रविवार को राजस्थान के चुरू जिले के सरदारशहर में अपरान्ह 3 बजे देवलोकगमन हो गया। वे करीब 90 वर्ष के थे। वे गत 25 अप्रैल को चातुर्मास के लिए सरदारशहर आए थे और वहाँ गोठियों की हवेली में ठहरे हुए थे। सोमवार शाम सरदारशहर में अंतिम संस्कार किया जाएगा।
तेरापंथ के इतिहास में पहली बार आचार्य तुलसी के जीवनकाल में ही उनके उत्तराधिकारी के रूप में आचार्य महाप्रज्ञ को धर्मसंघ का दसवाँ आचार्य बनाया गया और आचार्य तुलसी गणाधिपति कहलाए।
आचार्य महाप्रज्ञ ने आचार्य तुलसी के अणुव्रत आंदोलन को व्यापक बनाने के साथ नागौर जिले के लाडनूँ में स्थापित जैन विश्व भारती को नए आयाम दिए। झुँझुनूँ जिले के टमकोर गाँव में 14 जून 1920 को जन्मे नथमल को आठवें आचार्य कालूगणी ने दीक्षा प्रदान की और मुनि नथमल के रूप में उनके भावी जीवन के निर्माण का दायित्व आचार्य तुलसी को सौंपा।
उन्हें 3 फरवरी 1969 को तेरापंथ के युवाचार्य पद पर प्रतिष्ठित कर 1978 में महाप्रज्ञ के नाम से अलंकृत किया गया।