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अमरनाथ यात्रा में बर्फ बारी की चेतावनी

प्रकृति बन सकती है यात्रियों की दुश्मन

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प्रकृति हर साल अमरनाथ यात्रा में शामिल होने वालों के लिए शत्रु की भूमिका निभाती रही है। यह इससे भी स्पष्ट होता है कि हर साल औसतन सौ के करीब श्रद्धालु प्राकृतिक हादसों में जानें कई सालों से गँवा रहे हैं। अमरनाथ यात्रा के अभी तक के ज्ञात इतिहास में दो बड़े हादसों में चार सौ श्रद्धालु प्रकृति के कोप का शिकार हो चुके हैं। यह बात अलग है कि अब प्रकृति का एक रूप ग्लोबल वार्मिंग के रूप में भी सामने आया था जिसका शिकार पिछले कई सालों से हिमलिंग भी हो रहा है।

अमरनाथ यात्रा कब आरंभ हुई थी कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है। पर हादसों ने इसे कब से अपने चपेट में लिया है, वर्ष 1969 में बादल फटने के कारण 100 के करीब श्रद्धालुओं की मौत की जानकारी जरूर दस्तावेजों में दर्ज है। यह शायद पहला बड़ा प्राकृतिक हादसा था इसमें शामिल होने वालों के साथ।

दूसरा हादसा था तो प्राकृतिक लेकिन इसके लिए इंसानों को अधिक जिम्मेदार इसलिए ठहराया जा सकता है क्योंकि यात्रा मार्ग के हालात और रास्ते के नाकाबिल इंतजामों के बावजूद एक लाख लोगों को जब वर्ष 1996 में यात्रा में इसलिए धकेला गया क्योंकि आतंकी ढाँचे को 'राष्ट्रीय एकता' के रूप में एक जवाब देना था तो 300 श्रद्धालु मौत का ग्रास बन गए।

प्रत्यक्ष तौर पर इस हादसे के लिए प्रकृति जिम्मेदार थी मगर अप्रत्यक्ष तौर पर जिम्मेदार राज्य सरकार थी जिसने अधनंगे लोगों को यात्रा में शामिल होने के लिए न्यौता दिया तो बर्फ बारी ने उन्हें मौत का ग्रास बना दिया। अगर देखा जाए तो प्राकृतिक तौर पर मरने वालों का आँकड़ा यात्रा के दौरान प्रतिवर्ष 70 से 100 के बीच रहा है। इसमें प्रतिदिन बढ़ोतरी इसलिए हो रही है क्योंकि अब यात्रा में शामिल होने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है।

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अगर मौजूद दस्तावेजी रिकार्ड देखें तो वर्ष 1987 में 50 हजार के करीब श्रद्धालु अमरनाथ यात्रा में शामिल हुए थे और आतंकवाद के चरमोत्कर्ष के दिनों में वर्ष 1990 में यह संख्या 48 सौ तक सिमट गई थी। लेकिन उसके बाद जब इसे एकता और अखंडता की यात्रा के रूप में प्रचारित किया जाने लगा तो इसमें अब 3 से 5 लाख के करीब श्रद्धालु शामिल होने लगे हैं।

इतना जरूर है कि ब़ढ़ती संख्या भी ग्लोबल वार्मिंग के साथ-साथ हिमलिंग और पहाड़ों के पर्यावरण को प्रभावित करने लगी है। तीन साल पहले का हाल लें तो आधिकारिक यात्रा की शुरूआत से पहले ही 50 हजार लोगों की साँसों और हाथों की गर्मी हिमलिंग को पिघला चुकी थी। पर्यावरण को कितना नुकसान पहुँच रहा है इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के मुताबिक पिछले साल यात्रा मार्ग से 55 हजार टन कू़ड़ा एकत्र किया गया था जिसमें सबसे अधिक वह प्लास्टिक था जिस पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है।

ऐसे में अमरनाथ यात्रा में शामिल होने वालों के लिए यह बुरी खबर भी हो सकती है कि मौसम विभाग अगले कुछ दिनों के दौरान जम्मू-कश्मीर में जबरदस्त बारिश और यात्रा मार्ग पर बर्फबारी की चेतावनी देते हुए कह रहा है कि मौसम अमरनाथ यात्रा का सारा मजा किरकिरा कर सकता है।

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