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कठिन नहीं हैं भाग्य बदलना

- भावना नेवासकर

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हमारे साथ जो भी अच्छा या बुरा घटित होता है। प्रायः हम उसे प्रारब्ध या नसीब कहते हैं। कई बार हम देखते हैं कि कोई बहुत दान-धर्म करता है, भगवान को पूजता है, फिर भी उसे कई दुःख भोगने पड़ते हैं और इसके विपरीत कुछ लोग ऐसा कुछ न करके भी खुशी से रहते हैं। कई बार हम सुनते हैं कि फलाँ तो नसीब वाली या वाला है, जो सब कुछ मिला या फलाँ तो बदनसीब ही है, इतना सब करता है फिर भी दुःख उठाता है, क्यों?

इस सभी को हम प्रारब्ध समझ कर छोड़ देते हैं, परंतु कई बार ऐसा सोचने में आता ही है कि आखिर ये प्रारब्ध क्या है? कैसे बनता है? हमारे ही साथ ऐसा क्यों? परंतु उसके उत्तर अपने अंदर ढूँढने की बजाय हम अंधविश्वासों या बाबाओं के चक्कर में पड़ जाते हैं? सुख और दुःख जीवन का हिस्सा होते हैं और हमारे कर्मों के अनुसार ये आते-जाते रहते हैं।

पुराणों के अनुसार मनुष्य के पिछले जन्मों के कर्मों व इच्छाओं के अनुसार ही उसका नसीब ईश्वर बनाकर उसके साथ भेजता है। इस कारण कहा भी जाता है कि नसीब का लिखा नहीं टलता? जो होना है वो होकर ही रहता है, पर कभी-कभी नसीब भी बदलते हैं। कड़ी मेहनत, ईमानदारी, सच्ची लगन और अच्छे शुद्ध मन से किए गए निष्काम कर्मों से आप अपना नसीब बदल सकते हैं। इसके लिए हमें अपने मन को भी निष्कपट, निच्छल बनाने का प्रयास करना होगा।

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अपने सामने आई किसी भी अच्छी या बुरी परिस्थिति के प्रति संयमित होकर उसका हल निकालना होगा। क्रोध पर काबू करना होगा। ये सब संभव है, पर उसके लिए प्रयास करना होगा। अमरवाणी, अच्छी सूक्तियाँ, उपदेश, अच्छी किताबें पढ़ कर धीरे-धीरे उन्हें आत्मसात करना होगा, तभी आपका मन पवित्र होता जाएगा। चाहें तो आप इसे आदत भी बना सकते हैं कि रोज सुबह उठकर एक अमृत वचन पढ़ेंगे (एक लाइन के), जिससे आपका सारा दिन अच्छे व स्वच्छ मन से व्यतीत हो, परंतु उसे अमल में भी लाना होगा।

इसके अलावा दूसरों की मदद करने का मौका मिलने पर गँवाएँ नहीं। दूसरों के सुखों में खुश होना सीखें, जलन की भावना को स्वयं से दूर रखें और हो सके तो किसी दुःखी व्यक्ति के कष्ट दूर करने का प्रयास करें, नहीं तो कम से कम उसका मानसिक संबल बढ़ाने में तो मदद करें ही।

इस प्रकार की मानसिकता यदि आप रखेंगे तब आपको अपने दुःख का एहसास कम होता जाएगा। आपमें हर परिस्थिति का सामना करने का सामर्थ्य भी आ जाएगा। फिर उन लोगों की दुआएँ भी मिलती हैं, जिनकी आपने कठिन परिस्थिति में मदद की थी और दुआओं में तो कमाल का असर होता ही है। ईश्वर तक पहुँचने का यह सरलतम मार्ग है।

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