पुरातात्विक अस्मिता का प्रतीक पाण्डव कालीन सोहागपुर (शहडोल) का विराट मंदिर न केवल दिनोंदिन जर्जर हो रहा है बल्कि तेजी से झुककर तिरछा हो रहा है। इससे इस प्राचीन मंदिर के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। वर्ष 1975 में इस मंदिर को केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को सौंपा गया था, तभी से इसके रखरखाव पर ध्यान नहीं दिया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि 125 फिट ऊँचे मंदिर का प्रमुख हिस्सा पीछे की तरफ झुकता जा रहा है। मरम्मत नहीं हुई तो मंदिर कभी भी धराशायी हो जाएगा।
सिर्फ देखरेख के लिए यहाँ तीन केयरटेकर तैनात हैं, जो पुरातात्विक संपदा की देखरेख भर कर रहे हैं। मंदिर के मूल स्वरूप के जीर्णोद्घार पर कोई काम नहीं हो रहा है। चूँकि यह केंद्रीय पुरातत्व विभाग के अधीन है इसलिए स्थानीय प्रशासन कुछ नहीं कर पा रहा है। इतिहासकारों के अनुसार 70 साल पहले मंदिर के सामने का हिस्सा धराशायी हो गया था, जिसे तत्कालीन रीवा नरेश गुलाबसिंह ने ठीक कराया था। उसके बाद ठाकुर साधूसिंह और इलाकेदार लाल राजेन्द्रसिंह ने भी मंदिर की देखरेख पर ध्यान दिया। यह विराट मंदिर केंद्रीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है।
यह विराट मंदिर हजारों साल पुराना है। मंदिर के पीछे का हिस्सा झुकता जा रहा है। ऐतिहासिक धरोहर खतरे में है। मंदिर के रखरखाव पर न तो केंद्र सरकार ध्यान दे रही है और न ही राज्य सरकार। वर्ष 1997 से यह मंदिर तेजी से पीछे की ओर झुकता जा रहा है। केन्द्रीय पुरातत्व विभाग ने यदि जल्दी मंदिर के रखरखाव पर काम नहीं किया तो निश्चित रूप से यह धराशायी हो जाएगा। मंदिर ऐतिहासिक है और उसका संरक्षण बहुत जरूरी है।