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तुळजा भवानी की कथा

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कृत युग में करदम नामक एक ब्राह्मण साधु थे। उनकी अनुभूति नामक अत्यंत सुंदर व सुशील पत्नी थी।

जब ब्राह्मण करदम की मृत्यु हुई तब अनुभूति ने सती होने का प्रण किया। परंतु गर्भवती होने के कारण उन्हें सती होने का विचार त्यागना पड़ा।

फिर उन्होंने मंदाकिनी नदी के किनारे अपनी तपस्या प्रारंभ कर दी। उस इस दौरान कूकर नामक राजा अनुभूति को ध्यान मग्न देखकर उनकी सुंदरता पर आसक्त हो गया और अनुभूति के साथ दुष्कर्म करने का प्रयास किया।

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इस दौरान अनुभूति ने माता से याचना की और वहां मां अवतरित हुईं।

मां के साथ युद्ध के दौरान कूकर एक महिष रूपी राक्षस में परिवर्तित हो गया और महिषासुर कहलाया। मां ने महिषासुर का वध किया और यह पर्व ‘विजयादशमी’ कहलाया।

इसी कारण से मां को ‘त्वरिता’ नाम से भी जाना जाता है, जिसे मराठी में तुळजा भी कहते हैं।

तभी से तुळजा भवानी के मंदिर की ख्याति मराठा राज्य में फैली और यह देवी भोंसले प्रशासकों की कुलदेवी के रूप में पूजी जाने लगीं।

महाराज छत्रपति शिवाजी भी अपने प्रत्येक युद्ध के पहले माता से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यहां जरूर आते थे।

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