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पतित-पावनी गंगा

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हमें फॉलो करें गंगा नदी
- फरीद खान

ND
गंगा शब्द ही पवित्रता का प्रतीक है। प्रत्येक हिन्दू इसमें स्नान करने को लालायित रहता है और मृत्यु के समय गंगाजल पीने की आशा रखता है। तप और ध्यानाभ्यास के लिए जिज्ञासु तथा परिव्राजक गंगा तट पर ही वास करना चाहते हैं। सत्ययुग में सभी स्थान पवित्र समझे जाते थे। त्रेतायुग में पुष्कर तीर्थ पवित्रतम था।

द्वापर युग में यह महात्म्य कुरुक्षेत्र को प्राप्त हुआ। कलियुग में यही महिमा गंगाजी को मिली है। देवी भागवत में लिखा है- शतशः योजन दूर बैठा मनुष्य भी यदि गंगा के नाम का उच्चारण करता है, तो वह पापों से मुक्त होकर भगवान श्रीहरि के धाम को प्राप्त करता है।

गंगा स्नान से सारे पाप धुल जाते हैं, ऐसी लोगों की मान्यता रहती है। गंगा में लगाई गई एक डुबकी ही श्रद्धालुओं को क्षणभर में पवित्र कर देती है, इसमें रत्तीभर भी संदेह नहीं है। कट्टर नास्तिक तथा घोर बुद्धिवादी भी स्फूर्तिदायक गंगा स्नान करते हैं। कोई भी श्रद्धालु स्नान से पहले गंगा का आवाहन करता है, और नदी में डुबकी लगाने से पहले उसी में गंगा की उपस्थिति की अनुभूति करता है।

यदि उसका निवास स्थान गंगा से दूर है तो भी वह किसी न किसी दिन गंगा दर्शन तथा उसमें स्नान का सौभाग्य पाने को उत्सुक रहता है। ईश्वर कृपा से कलिमलहारिणी (पतित-पावनी) गंगा में स्नान करने का जब सुअवसर प्राप्त कर लेता है, तो वह वहाँ से गंगाजल ले आता है व सावधानीपूर्वक पवित्र पात्र में संभालकर रखता है।

गंगा भगवान विष्णु का स्वरूप है। इसका प्रादुर्भाव भगवान के श्रीचरणों से ही हुआ है। तभी तो गंगा (माँ) के दर्शनों से आत्मा प्रफुल्लित तथा विकासोन्मुखी होती है।

ऋषिकेश में गंगा दर्शन से आत्मा को परमानंद प्राप्त होता है। गंगातीर पर बैठकर प्रभु स्मरण करने का अवसर ईश्वरीय अनुकंपा से ही प्राप्त होता है। गंगातट पर एकांत में बैठिए। चित्त को एकाग्र कीजिए। ध्यान लगाइए, आप अनुभव करेंगे कि अंतःकरण से आध्यात्मिक स्फुरणों की गति आपकी अपराधी अंतर्रात्मा को भी कुचलकर कितनी बढ़ जाती है।

इसमें रोगोत्पादक कीटाणु तो हो ही नहीं सकते। इसकी शुद्धता का परीक्षण प्रयोगशालाओं में कई वैज्ञानिक कर चुके हैं। इसके जल में पर्याप्त खनिज पदार्थ रहने के कारण यह जल कई रोगों से मुक्ति प्रदान करता है। गंगाजल के खनिज पदार्थ रक्त को विषैला नहीं होने देते। पश्चिम के डॉक्टर भी चर्मरोगों के निवारण के लिए गंगाजल को सर्वोत्तम बताते हैं। इसमें ऐसी रहस्यमयी शक्तियाँ हैं, जो जगत की किसी भी नदी में नहीं हैं।

गंगोत्री गंगा का उद्गम स्थान है जो कि हिमालय में है। गंगा माता का अनुसरण कीजिए- सहनशील बनिए। क्षमाशीलता अपनाइए। मधुर बनिए। सब पर अथाह प्रेम वर्षा कीजिए। जो कुछ भी आपके पास है, भौतिक, नैतिक, मानसिक या आध्यात्मिक मानवमात्र के साथ मिलकर इसका उपभोग कीजिए।

हम जितना अधिक बाँटेंगे, उतना अधिक हमें मिलेगा। सबको अपनाइए। समदर्शिता का अभ्यास कीजिए। श्रद्धा-भक्ति तथा निष्ठा सहित गंगा मातेश्वरी की पूजा कीजिए। प्रीति, पवित्रता, आत्मसंयम तथा समदृष्टि रूपी पुष्पों से माँ गंगा की अर्चना कीजिए। उसके मधुरनामों का गायन कीजिए। माँ गंगा की कृपादृष्टि सब पर हो। माँ अपने सान्निध्य में वास करने का सबको सुअवसर दे, ताकि हम अपनी योग साधना में अहर्निशलीन रह सकें।

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