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पौष : सूर्य उपासना का महीना

पौष माह में करें सूर्य उपासना

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हमें फॉलो करें पौष माह
- आचार्य गोविन्द बल्लभ जोशी
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यद्यपि पौष के महीने में शादी-विवाह आदि लौकिक उत्सव वर्जित होते हैं क्योंकि लोक रीति में इसे काला महीना भी कहा जाता है लेकिन पूजा-उपासना के लिए पौष का महीना भी विशेष महत्व रखता है। सूर्य के बिना संसार का कोई भी कार्य होना असंभव है।

वेद में सूर्य को संसार की आत्मा कहा गया है 'सूर्यआत्मा जगत्स्थुषश्च।' अतः नवग्रहों में सूर्य की उपासना का पौष का महीना सबसे महत्वपूर्ण बताया गया है। आज भी भारतीय समाज में विशेषकर महिलाएँ पौष के रविवार की उपासना कर सूर्य नारायण को प्रसन्न करती हैं।

पौष के रविवार की उपासना में दिन भर व्रत कर सांय काल मीठे भोजन के साथ व्रत खोला जाता है। नमक का उपयोग इसमें पूरी तरह से निषेध है। प्रातः काल सूर्य उदय से पहले उठकर सामान्य जल से स्नान करना चाहिए तथा उगते हुए सूरज को रोली, चावल और लाल रंग के फूलों के साथ अर्घ्य चढ़ाना चाहिए।

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सावधानी इस बात की रखनी चाहिए कि चढ़ा हुआ जल पैरों के नीचे न आए। हो सके तो फुलवारी या गमले के ऊपर जल की धारा गिरनी चाहिए। उस जल को हाथों की उंगलियों से अपने मस्तक में तिलक के रूप में लगाकर भगवान सूर्य से सुख-शांति की प्रार्थना करनी चाहिए।

पौष के महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का बहुत बड़ा महत्व है। इसे संकष्ट चतुर्थी भी कहते हैं। इस दिन रविवार हो तो और भी महत्व बढ़ जाता है। भविष्योत्तर पुराण में कहा गया है कि इस उपासना से मनुष्य के संकटों का हरण होता है तथा घर में सुख-समृद्धि आने लगती है।

पौष कृष्ण की अष्टमी को आश्वालयन अर्थात्‌ अष्टकाद्धा कहा गया है। इस दिन पितरों के निमित्त दान करने से कुल वृद्धि होती है। साथ ही इस तिथि को रूक्मिणी अष्टमी भी कहा जाता है। भगवान कृष्ण रूक्मिणी और उनके पुत्र प्रद्युम्न की मूर्तियों का श्रृंगार कर पूजन करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है।

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पौष कृष्ण पक्ष की एकादशी को पद्म पुराण में सफला एकादशी कहा गया है। इस व्रत के करने से साधक जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। ध्यान रखना चाहिए कि एकादशी के व्रत में भगवान विष्णु को जौ चढ़ाने चाहिए। चावल का प्रयोग नितांत वर्जित बताया गया है। खाने में भी इनका प्रयोग नहीं करना चाहिए।

पौष शुक्ल पक्ष द्वितीया को आरोग्य व्रत के द्वारा शारीरिक और मानसिक स्वस्थता के लिए सूर्यास्त के बाद उदय होते हुए चंद्रमा की पूजा की जाती है। इस पूजन में गन्ने का रस आदि चढ़ाया जाता है। आयुर्वेद ग्रंथों के अनुसार चंद्रमा औषधियों का राजा है। इसी तिथि के दिन गन्ने में उसका औषधि प्रभाव परवान पर होता है।

इसी प्रकार पौष शुक्ल पक्ष की सप्तमी मार्तण्ड सप्तमी कहलाती है। मार्तण्ड सूर्य का ही एक नाम है। इस व्रत के करने से मनुष्य का यश सूर्य के प्रकाश की तरह फैलता है। इसी प्रकार पौष शुक्ल एकादशी पुत्रदा एकादशी कहलाती है। प्राचीन काल में भद्रावती नगरी के राजा वसुकेतु ने इस तिथि की उपासना कर यशस्वी पुत्र की प्राप्ति की थी।

इस प्रकार पौष का महीना अनेक उपासनाओं के अपने में लिए हुए रहता है। इस सबके केंद्र में भगवान सूर्य और भगवान लक्ष्मी नारायण मुख्य हैं।

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