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प्रोफेशनल पंडितों का बढ़ा चलन...

- सपना बाजपेयी मिश्रा

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शादी का मंडप... श्लोक पढ़ते पंडितजी और ध्यान से सुनते वर-वधू तथा उनके परिजन...। दृश्य काफी आम है। हमारे पारंपरिक विवाह आयोजनों में विधि-विधान तथा रीतियों का काफी महत्व है। जाहिर है इसके लिए एक दक्ष पंडित का होना आवश्यक है। इसके चलते ही अब पंडिताई का करियर भी बेहद प्रोफेशनलिज्म में बदल गया है। अब पंडितजी को दक्षिण में भी 11 नहीं, डेढ़ लाख रुपए मिलते हैं।

यह पंडितजी या पुरोहित ही होते हैं जो वर-वधू के सामने सात वचनों की महत्ता बताते हैं और पति-पत्नी को एक-दूसरे के प्रति नैतिक कर्तव्यों का पूरा वर्णन प्रस्तुत करते हैं। वर-वधू के विवाह बंधन में बँधने में पंडितजी का रोल काफी बड़ा माना जाता है। उनके इस रोल के लिए उन्हें अच्छा-खासा मेहनताना भी दक्षिणा स्वरूप दिया जाता है। सभी जजमान अपनी हैसियत के अनुसार शादी कराने वाले पंडितों को दक्षिणा देते हैं। 1100 रुपए से शुरू होने वाली यह दक्षिणा इन दिनों एक या डेढ़ लाख तक पहुँच गई है।

चौंक गए न! एक बात और जान लीजिए अब यह दक्षिणा सिर्फ रुपयों तक सीमित नहीं रही, पंडितों को नकद दक्षिणा के साथ-साथ महँगे उपहार भी दिए जा रहे हैं। इन उपहारों में फैंसी मोबाइल फोन, म्यूजिक सिस्टम, एलसीडी टीवी, एअर कंडीशनर और महँगे गैजेट से लेकर मोटर बाइक, कार या सबसे बड़ा गिफ्ट, अपार्टमेंट तक शामिल हैं। उपहारों की यह सूची यहीं खत्म नहीं होती। कुछ जजमान तो दहेज में मिलने वाली रकम का एक हिस्सा तक पंडितों को दे देते हैं और ऐसा वे अपनी मर्जी से नहीं करते बल्कि पंडितों और जजमान के बीच तय एक डील के तहत उन्हें ऐसा करना होता है। यह डील होती है विवाह के लिए उचित वधू, जो साथ में ढेर सारा दहेज भी लाए, की तलाश करने की। यदि पंडित अपने जजमान के लिए धनी कन्या का रिश्ता ले आते हैं और विवाह तय हो जाता है तो जजमान तय डील के अनुसार दहेज का एक हिस्सा पंडितजी को देते हैं।

इन दिनों उच्च और धनी वर्ग अपने बच्चों के विवाह को यादगार बनाने के लिए वेडिंग प्लानर की मदद ले रहे हैं। शादी की सारी तैयारियाँ इन वेडिंग प्लानर के जिम्मे होती हैं, इसमें पंडित भी आता है। वेडिंग प्लानर के साथ जुड़े पंडितों की फीस 51 हजार से प्रारंभ होती है और यह फीस वेडिंग प्लानर कितने बड़े समूह का है, इसके अनुसार बढ़ती जाती है। यानी पंडित की फीस तो उसे मिलेगी ही इसके अलावा जजमान जो भी उपहार देना चाहें दे सकते हैं। कई बार एक रात में पंडितों के लाखों के वारे-न्यारे हो जाते हैं।

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पिछले दस वर्षों से पंडिताई का कार्य कर रहे रमेशचंद्र त्रिपाठी शादियों के सीजन में खासे व्यस्त रहते हैं। इस दौरान उनकी कमाई का ब्योरा काफी लंबा है। रमेश कहते हैं, 'हम माँगते कुछ नहीं हैं, सब अपनी हैसियत से देते हैं। अगर कोई देता है तो हम मना नहीं करते; क्योंकि घर आई लक्ष्मी को ठोकर नहीं मारनी चाहिए।'किसी-किसी सीजन में रमेश को 8 से 10 लाख नकद और सैकड़ों उपहार मिल जाते हैं।

उन्होंने पंडिताई के पेशे से दिल्ली के पॉश इलाके में अपार्टमेंट खरीद लिया है। उनके इस अपार्टमेंट में सुख-सुविधाओं की सारी वस्तुएँ एक से ज्यादा संख्या में मौजूद हैं। मसलन दो टीवी, दो फ्रिज, तीन म्यूजिक सिस्टम और घर के सभी सदस्यों के पास फैंसी मोबाइल फोन। शादी कराने पर मिलने वाले उपहारों से ही उनका घर भरा पड़ा है।

बकौल रमेश, 'कभी-कभी तो एक ही उपहार इतनी बार मिल जाता है कि हम उसे किसी और को उपहार स्वरूप दे देते हैं। क्योंकि घर में कमरे तो गिनती के होते हैं। चीजें रखने के लिए जगह भी होना चाहिए। शादी-ब्याह कराने वाले कई पंडित खासकर मेट्रो सिटीज में रहने वाले, बड़ी शानो-शौकत वाली जीवनशैली व्यतीत कर रहे हैं। पिछले तीन सालों से वेडिंग प्लानर कंपनी चला रहीं आशिया कहती हैं, 'पंडितों पर गिफ्टों की बरसात करने वाले उनके जजमान अगर शादी के आयोजन में 40 से 50 लाख खर्च कर रहे हैं तो उन्हें शादी में मुख्य भूमिका निभाने वाले पंडित को 50 से 75 हजार कैश और 20 से 25 हजार के उपहार देने में थोड़ी सी भी हिचक महसूस नहीं होती।'

देश में शादियों पर बड़ी रकम खर्च करने वाले कुछ खास वर्ग ही हैं, इनमें सबसे पहले आते हैं एनआरआई। इनके पास पैसों का अथाह भंडार है। शादी जैसे खास मौके को और भी खास बनाने के लिए यह वर्ग पैसा पानी की तरह बहाता है। एक एनआरआई की शादी कराने वाले पंडित को जो दक्षिणा मिलती है, वह पूरी जिंदगी सामान्य वर्ग के विवाह कराने पर प्राप्त दक्षिणा से कहीं ज्यादा होती है। दूसरे और तीसरे वर्ग में गुजराती और मारवाड़ी आते हैं। यह दोनों ही वर्ग विवाह में काफी पैसा खर्च करते हैं, इस समुदाय में पंडितों की काफी पूछ और सम्मान होता है। इनका यही प्रयास रहता है कि किसी भी प्रकार पंडितजी प्रसन्ना हो जाएँ और उन्हें समृद्धि व सुखी जीवन का आशीर्वाद दें। इसी मोह में यह समुदाय पंडितों पर धन की बरसात कर देता है और महँगे उपहार देकर पंडितजी को खुशी-खुशी विदा करता है।

पंडितों की बदलती आर्थिक स्थिति पर कुछ लोगों का मानना है कि आज कुछ लोगों के पास खर्च करने के लिए पैसों की कमी नहीं है। अगर ऐसे में इस पैसे का हिस्सा पंडितों को धनवान बना रहा है, तो इससे दिक्कत क्यों हो? जबकि कुछ इसे समाज का दुर्भाग्य बताकर पंडितों को लालची और बिना किसी मेहनत के धन कमाने वाला कह रहे हैं। समाजशास्त्रियों की राय इन सबसे कुछ भिन्न है। वे कहते हैं, 'आज से दो या तीन सदी पहले शादी-ब्याह या अन्य कर्म-कांड कराने पर पंडितों को दक्षिणा स्वरूप एक जानवर दिया जाता था और ब्याह के उपरांत उन्हें भोजन करा दिया जाता था। कुछ समय बाद इस दक्षिणा में अनाज भी जुड़ गया।

दक्षिणा में पंडितों को धन देने का चलन 18वीं सदी के अंत में प्रारंभ हुआ जो दिनों-दिन बढ़ता गया। इसके पीछे कुछ कारण रहे हैं। पुराने समय में जीवनयापन करने के लिए दो वक्त की रोटी और तन ढकने के लिए कपड़े मिल जाना ही पंडितों के लिए सौभाग्य की बात होती थी। अन्य वर्ग चाहे कितनी भी तरक्की करें लेकिन गरीब ब्राह्मण दो जून की रोटी कमाकर ही खुश हो जाया करता था।

जैसे-जैसे प्रतिस्पर्धा ने समाज में अपने पैर पसारने शुरू किए और जीवनयापन के लिए लोगों की जरूरतें बढ़ती गईं वैसे-वैसे पंडितों को भी धन की जरूरत महसूस होने लगी। इसी जरूरत ने उन्हें उनके कार्य के बदले मिल रहे धन को लेने में होने वाली हिचक को खत्म कर दिया।

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