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भगवान को समर्पित करो अपने 'कर्म'

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सच्ची भावना से करो 'कर्म योग'
 
तुम जो काम करते हो, वह महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण तो वह दिव्य चेतना है, वह भावना है, जिससे तुम उस कार्य को कर रहे हो। अधिकतर समय हम केवल अपने स्वार्थ के लिए कार्य करते हैं, अपने छोटे-छोटे निजी स्वार्थों के लिए। 
 
एक उच्चतम भावना के साथ काम करो। अपने को ऐसे ही समर्पित कर दो जैसे तुम हो। अपने सारे स्वार्थ, अपनी बुरी आदतें, झगड़े, क्रोध, वासना, इच्छाओं, भावनाओं और अनुभूतियों को प्रभु को समर्पित करो, और अर्पण करो, और तुम देखोगे कि कैसे तुम्हारी मदद हो जाती है- कैसे तुम्हारे काम बन जाते हैं। 
 
'कर्म योग' का विश्वास करो, उसका अभ्यास करो। जब तुम खाना खाओ तो उसे याद करो और खाना भी और खाने की क्रिया उसे समर्पित करो। यदि कहीं कोई गंदगी है तो उसे साफ करते समय भी प्रभु को याद करो और सफाई का वह काम उसे अर्पित करो। इस प्रकार सच्ची भावना से काम करो, उसे ही वास्तविक साधना बनाओ। यही सच्ची प्रार्थना है, और इसी प्रक्रिया से तुम परमात्मा तक पहुंच सकते हो, तुम अलौकिक चेतना तक पहुंच सकते हो। 
 
जब तुम कार्य कर रहे हो तो तुम अपने मन, शरीर, संवेदनाओं और अपना चैत्य सबको देखोगे। यह अपने आपको जानने, अपने जीवन को समझने और निपुणता प्राप्त करने के लिए अनिवार्य भी है। यदि तुम अपने आपको नहीं जानते तो तुम्हारे कार्य में कभी पूर्णता, निपुणता नहीं आएगी।
 

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