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भले आदमी के पीछे ईश्वर की छाया

- निशांत

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बहुत पुरानी बात है। कहीं एक भला आदमी रहता था जो सभी से प्रेम करता था और सारे जीवों के प्रति उसके हृदय में अपार करुणा थी। प्रसन्न होकर ईश्वर ने उसके पास अपना देवदूत भेजा। वह आकर बोला- 'ईश्वर ने मुझे आपके पास यह कहने के लिए भेजा है कि वे आपसे बहुत प्रसन्न हैं और आपको कोई दिव्य शक्ति देना चाहते हैं। क्या आप लोगों को रोगमुक्त करने की शक्ति प्राप्त करना चाहेंगे?' भले आदमी ने कहा- 'बिलकुल नहीं। मैं यही चाहूँगा कि ईश्वर स्वयं इस बात का निर्णय करे कि किसे रोगमुक्त किया जाए।'

'तो फिर आप पापियों को सन्मार्ग पर वापस ले आने की शक्ति ग्रहण कर लें।' देवदूत के यह कहने पर उस व्यक्ति ने कहा- 'यह तो आप जैसे देवदूतों का काम है। मैं नहीं चाहता कि लोग मसीहा जानकर मेरा सम्मान करें।'

'आपने तो मुझे संकट में डाल दिया।' देवदूत ने कहा- 'आपको कोई शक्ति दिए बिना मैं स्वर्ग नहीं लौट सकता। यदि आप स्वयं कोई शक्ति नहीं लेना चाहेंगे तो मुझे विवश होकर आपके लिए चयन करना पड़ेगा।'

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उस आदमी ने कुछ क्षण सोचा, फिर कहा- 'ठीक है, यदि ऐसा है तो मैं चाहता हूँ कि ईश्वर मुझसे जो भी शुभ कर्म करवाना चाहता है वे अपने आप होते जाएँ परंतु उनमें मेरा हाथ होने का पता किसी को भी नहीं चले, मुझे भी नहीं।'

'ऐसा ही होगा।' देवदूत ने कहा। उसने भले आदमी की परछाई को रोगमुक्त करने की दिव्य शक्ति से संपन्न कर दिया परंतु केवल उसी समयकाल के लिए जब उसके चेहरे पर सूर्य की किरणें पड़ रही हों। इस प्रकार, वह भला आदमी जहाँ कहीं भी गया वहाँ लोग रोगमुक्त हो गए, बंजर धरती में फूल खिल उठे और दुखियों के जीवन में वसंत आ गया।

अपनी दिव्य शक्तियों से अनभिज्ञ वह भला आदमी सालों तक दूर देशों की यात्राएँ करता रहा। उसके पीछे सदैव चल रही उसकी परछाई ईश्वरीय इच्छा को पूर्ण करती रही।

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