Hanuman Chalisa

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

मन में रखें दया भाव...

मूक प्राणीमात्र के लिए बहुत जरूरी

Advertiesment
हमें फॉलो करें प्रसिद्ध दार्शनिक
प्रसिद्ध दार्शनिक और चिकित्सक अल्बर्ट श्वाइत्जर मानवीय भावनाओं से ओतप्रोत थे। उन्होंने अपना लगभग सारा जीवन मध्य अफ्रीका के बेहद अभावग्रस्त क्षेत्रों में मानवता की सेवा के लिए समर्पित कर दिया था और उन्हें इसके लिए वर्ष 1952 के नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनके हृदय में मनुष्यों के लिए ही नहीं बल्कि प्राणीमात्र के लिए दया भावना थी। वे छोटे-से-छोटे प्राणी की पीड़ा भी नहीं देख सकते थे और उसे तकलीफ से बाहर निकालने के लिए यत्न करने लगते।

WD
एक बार उन्हें अपने एक मित्र के साथ जरूरी काम से ट्रेन द्वारा कहीं जाना था। स्टेशन बहुत दूर था और पहले ही काफी देर हो चुकी थी। उन्होंने अपना आवश्यक सामान एक डंडे पर बाँधा और उसे अपने कंधे पर लादकर चल दिए। समय बहुत कम था और दोनों मित्र तेज चाल से चले जा रहे थे। श्वाइत्जर अपने मित्र के आगे चल रहे थे।

अचानक श्वाइत्जर उछलकर रास्ते के एक ओर खड़े हो गए। उनका मित्र झटका खाकर गिरते-गिरते बचा। मित्र ने पूछा- 'क्या हुआ?'

श्वाइत्जर ने कहा- 'देखो, यह एक छोटा-सा जीव रास्ते में पड़ा हुआ है। अभी यह हमारे पैरों के नीचे आकर कुचला जाता। इसे यहाँ से हटा देना चाहिए।'

श्वाइत्जर के मित्र ने देखा कि एक कुत्ते का पिल्ला रास्ते में बेहाल पड़ा है। उसने समझाया कि समय बहुत कम है और इस चक्कर में पड़े तो ट्रेन छूट जाएगी। लेकिन श्वाइत्जर ने उसकी नहीं सुनी और अपने डंडे की सहायता से उसे रास्ते से दूर हटा दिया ताकि उनके बाद में रास्ते से गुजरने वाले के पैरों के नीचे वह प्राणी न आ जाए। उसके बाद उन्होंने स्टेशन के लिए दौड़ लगा दी। वहाँ पहुँचने तक गाड़ी ने सीटी दे दी थी और वे दोनों बड़ी कठिनाई से गाड़ी पकड़ सके।

श्वाइत्जर ने अपने मित्र के मन में चल रहे भावों को भाँपकर उससे पूछा- 'किसी जीव की रक्षा करना ट्रेन पकड़ने से ज्यादा जरूरी काम नहीं है क्या?'

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi