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मन लगाकर किया काम ही फलप्रद

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हमें फॉलो करें मन फलप्रद
- कांतिलाल ठाकरे

ND
कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है। काम काम होता है। काम एक ही होता है। उसे करने के तरीके अनेक होते हैं। हर एक की अपनी शैली होती है। अपने तरीके से हर कोई अपना काम करता है। कुछ काम ऐसे होते हैं जो सिखाए नहीं जाते, अपने आप हो जाते हैं। खाना, पीना, सोना ये सब जन्मजात काम हैं।

भोजन करना भी एक काम है। भोजन बनाना उससे भी बड़ा काम है। भोजन के लिए बहुत भजन करना पड़ता है। अन्न और जल कहाँ नहीं भटकाता है। खाने के लिए ही तो सारे गाने हैं। अनिवार्य आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए हर एक को काम करना पड़ता है। कहते हैं- 'अजगर करे न चाकरी, पंछी करे ना काम/ दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।' यह भी जीवन दर्शन है।

यह जीवन दर्शन निष्क्रिय बनाने वाला है। हाथ पर हाथ रखकर बैठने से काम नहीं चलता है। कुछ न कुछ करते रहना है। सक्रिय जीवन दर्शन यह है- 'कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करहुँ सो तस फल चाखा।' हम सब रंगमंच के कलाकार हैं, जिसके हिस्से में जो काम आया है, वही उसे करना है।

नौकर का काम मालिक को खुश रखना है। जो भी काम बताया जाए वही उसे करना है। उसकी शान को देखिए- उसकी पत्नी नौकरानी कहलाती है। मेहतर का कार्य है सफाई करना। उसकी पत्नी मेहतरानी कहलाती है। छोटा काम कितना बड़ा हो गया। कहते हैं छोटे लोग छोटा काम करते हैं।
  कोई भी काम पहले छोटा ही होता है। बाद में बड़ा बनता है। पहले हर काम कठिन लगता है। लगता है कैसे होगा- क्या होगा। पर करते-करते वही सरल बन जाता है। अभ्यास से हर काम सरल बनता है। ऐसा माना जाता है कि दो काम बड़े कठिन होते हैं।      


बड़े लोग बड़ा काम करते हैं। पर कभी बड़े लोग छोटा काम करते हैं तो महान बन जाते हैं। छोटे लोग बड़ा काम करते हैं तो कोई पूछता नहीं है। कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया तो गिरधर कहलाए, पर हनुमानजी को किसी ने गिरधारी नहीं कहा।

हमारे सारे काम सुनियोजित होना चाहिए। समय पर जो काम हो जाए उसका ही महत्व है। काम में मन रमना चाहिए। मन लगाकर जो काम किया जाता है वही फलप्रद होता है। जो काम अपनी रुचि का हो उसमें तो मन लगता ही है, पर जो काम अपनी पसंद का न हो तो काम की पसंद के अनुसार अपनी पसंद बनाना पड़ती है। भोजन में मन लगता है जब अपनी पसंद का बना हो। पर कभी अपनी पसंद का न हो तो प्रभु का प्रसाद मानकर उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। अक्सर भोजन में मीन-मेख निकाली जाती है, पर यह नहीं देखा जाता कि किस प्रकार किन कठिनाइयों के बीच वह बनाया गया है।

काम में आनंद खोजना अपने हाथ में है। कुछ लोग काम को बोझ समझकर करते हैं। जैसे कोई एहसान कर रहे हों। पर कोई भी काम किए से किया जाए तो बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात तो तब होगी जब वह हिये से किया जाए। यानी मन लगाकर किया जाए। ऐसा ही काम चाहे छोटा या बड़ा हो, नाम करता है। काम से ही नाम होता है और इनाम मिलता है। पुरस्कार मिलता है।

कोई भी काम पहले छोटा ही होता है। बाद में बड़ा बनता है। पहले हर काम कठिन लगता है। लगता है कैसे होगा- क्या होगा। पर करते-करते वही सरल बन जाता है। अभ्यास से हर काम सरल बनता है। ऐसा माना जाता है कि दो काम बड़े कठिन होते हैं।

एक शादी करना और दूसरा मकान बनाना। शादी का काम कहता है- 'करके देख।' मकान बनाने का काम कहता है- 'बना के देख'। शादी-ब्याह में बहुत पापड़ बेलना पड़ते हैं। शादी लड़की की हो तो और भी कठिन लगता है। पहले तो संबंध तय होने में ही दिक्कत आती है। लड़की वाले अपने आपको कमजोर ही समझते हैं।

लड़के वाले अपनी सारी शर्तें मनवा लेते हैं। पूरी न होने पर लड़की वाले की पगड़ी उछाल देते हैं। फिर भी सब चलता है। सारे गीत गाना पड़ते हैं। मकान चाहे छोटा बनाओ या बड़ा, बजट से ऊपर ही जाता है। अपना घर हर एक का सपना होता है। हर काम लगन, निष्ठा व ईमानदारी से करना ही सफलता का मूलमंत्र है।

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