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मृत्यु एक शाश्वत सत्य

- भावना नेवासकर

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मृत्यु एक शाश्वत सत्य है। इस सत्य को हम जितना जल्दी स्वीकार कर लें, उतने ही हम सुखी, शांत और संयमित रहेंगे। धरती पर कोई भी जीव अमर नहीं है। अमर है तो वह है केवल 'परिवर्तन'। बाकी सब नाशवान ही हैं।

भगवान ने स्वयं भी जब मनुष्य रूप धरा तो उन्हें भी एक अवधि के उपरांत जाना पड़ा तो हम तो साधारण मनुष्य ही हैं। यह सत्य हम सभी जानते हैं, पर मानते नहीं हैं। इसी कारण अपने झूठे मान-सम्मान, अहंकार और मोह-माया के वशीभूत होकर कभी-कभी जान-बूझकर किसी के दिल को ठेस पहुँचाने वाली बातें भी करते हैं।

और तो और, खुद को सही साबित करने के लिए किसी को भी छोटी-छोटी बात में नीचा दिखाकर या किसी का मजाक उड़ाकर विजयी मुस्कान भी भरते हैं। कई बार तो गंदी राजनीति करने से भी गुरेज नहीं करते। ये सभी तुच्छ कार्य कर हम लोगों के सामने तो गर्व महसूस करते हैं, पर बाद में कई लोगों की अंतरआत्मा उन्हें कचोटती है।

अक्सर भावुक लोग गलत व्यवहार करने के उपरांत पछताते भी हैं कि अपने छोटे से अहम को कायम रखने के लिए हमने किसी को कितना गिराया या सताया और फिर ऐसे क्रियाकलाप स्वयं उन्हें और सामने वालों को भी रूहानी अशांति और मानसिक अस्थिरता ही देते हैं!

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'अहम' और 'मैं' की इन सभी बुरी आदतों से जो भी भावुक इंसान निजात पाना चाहता है, वह रोज सुबह उठकर यह सोच ले कि शायद इस दुनिया में मेरा यह आज आखिरी दिन है। ऐसा दिल से मान लीजिए, फिर देखिए हो सकता है आपके व्यवहार में कुछ अंतर आ जाए।

आप शायद कोई भी ऐसा गलत कार्य न कर पाएँ, जिससे किसी का दिल दुखे या किसी का अपमान हो। और तो और, हो सकता है कि आप किसी की मदद कर दें, यह सोचकर कि आज तो यह मेरा आखिरी दिन ही है तो क्यों न किसी का भला कर दूँ। इस प्रकार आपका सारा दिन निष्कपट भाव से, सहृदयता से गुजर जाएगा और फिर रात को सोते समय भगवान को धन्यवाद कहना भी न भूलें कि आज का दिन बहुत शांति और सरलता से बीता।

अब आपको नींद भी सुकूनभरी आएगी। फिर अगले दिन सुबह उठकर वही सोच लीजिए। यह दोहराते रहें। हो सकता है इस नकारात्मक भाव से ही आप एक सकारात्मक, सच्चे, हरदिल अजीज इंसान बन जाएँ, जिसके मन में न कोई छल-कपट है, न किसी प्रकार का कोई पश्चाताप।

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