Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

योग का मूलमंत्र जानिए

हमें फॉलो करें योग का मूलमंत्र जानिए
योग साधना से तन-मन दोनों स्वस्थ रहते हैं। जिसने योग साध लिया वही योगेश्वर है। हर कोई योगेश्वर बन सकता है। बशर्ते कि वह सहयोगी हो। सहयोग में भी योग है। जो सहयोगी है वही कर्मयोगी है। 

 
उपयोग में भी योग है। जो भी उपयोगी है वही योगी है। जब तक कोई उपयोगी रहता है उसकी पूछपरख होती रहती है, चाहे कोई वस्तु हो या व्यक्ति हो। इस बात का प्रमाण हमारा अपना शरीर है। शरीर के सारे अंग उपयोगी हैं। 
 
जब योग होता है तब संयोग होता है। संयोग में जो योग है, अद्भुत है, सुखदायक है। संयोग के बाद वियोग में भी योग है। यह प्रकृति का नियम है। संयोग भरपूर मिलता है तो वियोग भी भरपूर मिलता है। 
 
वह भी इस तर्ज पर 'जीवन के सफर में, राही मिलते हैं बिछुड़ जाने को/ और दे जाते हैं यादें, तन्हाई में तड़पाने को।' जब तक कोई सामने रहता है उसकी कद्र नहीं होती है, उसके चले जाने के बाद उसकी कमी का अनुभव होता है। क्षणिक वियोग के बाद जब फिर संयोग होता है, उसका आनंद अनुपम होता है। 
 
योग का मूलमंत्र ही यही है कि कर्मनिष्ठ बनो, धर्मनिष्ठ बनो, सत्यनिष्ठ बनो। योग सुयोग बन सके इस हेतु यह आवश्यक है कि हम अपनी शक्ति पहचाने और उसका सदुपयोग करें। 


 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi