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वसंतोत्सव और उसका महत्व

मन को लुभाने आया वसंत

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हमें फॉलो करें वसंतोत्सव
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- पं. प्रेमकुमार शर्मा

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व्रत का नामः- वसंतोत्सव
व्रत की तिथिः-पंचमी
व्रत के देवताः- भगवान मदन
पूजा का समयः-प्रातः काल संकल्प के साथ
व्रत का दिनः- रविवार
व्रत की पूजा विधिः- षोड़शोपचार या पंचोपचार विधि
व्रत के मंत्रः- ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः

व्रत की कथाः- इसे वसंतोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान कामदेव व उनकी पत्नी रति की पूजा की जाती है। इस व्रत के संबंध में ऐसी कथा प्रचलित है कि कामदेव ने इसी दिन से पंचशर द्वारा संसार का अभिसार किया था।

टिप्पणीः- वसंतोत्सव को कला, समृद्धि, शिक्षा, संसार विषयक कार्यों, सौंदर्य, रति क्रियाओं हेतु मनाया जाता है। इसी समय वसंत ऋतु का आगमन होता है।

मन को लुभाने आया वसंत : वसंतोत्सव का आरम्भ प्रतिवर्ष माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी से होता है। यह सर्वसमृद्ध, सुविख्यात, भारतीय भूमि के प्रकृति, कला व कौशल के प्रेम का महापर्व है। जो प्रतिवर्ष की भाँति इस वर्ष भी 20 मार्च 2011 माघ मास के शुक्ल पक्ष, दिन रविवार को मनाया जाएगा।

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जो एक तरफ ऋतु परिवर्तन तो दूसरी तरफ शिक्षा, ज्ञान, बौद्धिक विकास तथा नाना प्रकार की कलाओं में निपुणता प्राप्त करने के संकेत देता है। जिससे मानव सुशिक्षित व नम्र हो जीवन जीने की नाना प्रकार की कलाओं में दक्षता प्राप्त करते हुए जीवन के अन्तिम लक्ष्य मोक्ष को भी सहज ही प्राप्त कर लेता है।

वसंत को ऋतुराज के नाम से भी जाना जाता है। वसंत के आते ही पेड़-पौधों में नाना प्रकार के रंग-बिरंगे फूल मुस्कुरा उठते हैं। खेतों मे सरसों के फूल, गेंहू व जौ मे निकलती बालियाँ, आम के पेड़ों मे खिलती हुई आम्र मंजरी (बालें), मंद-मंद बहती हवाएँ व खिली हुई हल्की धूप, पुष्प रसों के लोभी भ्रमर समूहों का गुँजार व रंगबिरंगी तितलियों का समूह प्रत्येक व्यक्ति को मनमुग्ध कर देता है।

वसंत ऋतु में कूक भरती कोयल को देख कवि कविता करने लगता है। प्रकृति के सौंदर्य को निखारने के कारण इसे ऋतुराज वसंत भी कहा जाता है। इस तिथि का धार्मिक व ऐतिहासिक दृष्टि से बड़ा ही महत्व है। जिसमें धार्मिक दृष्टि से इस दिन विद्या, बुद्धि, कौशल, कला, संगीत, वाणी की दात्री वीणा वादिनी माँ भगवती सरस्वती की पूजा आराधना की जाती है। जिसने सम्पूर्ण विश्व में ज्ञानरूपी ज्योति को प्रकशित कर अंधकार व अज्ञान के बंधनों से सहज ही मुक्त होने की कला दी।

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जड़ को भी चेतन बनाया ऐसी परम कृपामयी भगवती सरस्वती की आराधना वसंत पंचमी के दिन सम्पूर्ण भारत विशेषत: भारत के पूर्वोत्तर भागों में बड़े धूम-धाम से की जाती है।

इस वसंत के आते ही नव जीवन का संचार प्रत्येक जीव व वनस्पति में फूट पड़ता है। इस दिन वसंती गीत, फाग आदि पारम्पारिक रूप से गाए जाते हैं। यह दिन उमंग व उत्साह के ऐसे अवसर लाता है कि मन झूम उठता है। इसे मदनोत्सव भी कहा जाता है। इसी दिन से पहली बार अबीर-गुलाल को उठाया जाता है। इस उत्सव के देवता भगवान श्रीकृष्ण और सौंदर्य तथा यौवन क्रियाओं के देवता कामदेव हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन कामदेव ने पंचशर अर्थात्‌ शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध द्वारा संसार में अभिसार को उत्पन्न किया करते है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण व श्रीराधिका जी के विनोद लीलाओं की झाँकी ब्रजमण्डल में प्रदर्शित की जाती है। साथ ही सौंदर्य व काम के देवता कामदेव तथा उनकी पत्नी रति जी की पूजा भी इस दिन की जाती हैं।

इसे माँ सरस्वती के भूमण्डल में प्रकट होने के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पीले वस्त्रों, पीले व सात्विक आहार तथा विविध प्रकार की पूजन सामग्री द्वारा माँ सरस्वती की ज्ञान वृद्धि, भगवान विष्णु की रक्षा व पालन हेतु, कामदेव की सौंदर्य तथा रति की रति क्रियाओं में शक्ति प्राप्त करने के लिए पूजन किया जाता है।

वसंत बहारों की मनोहारी छटा व कलरव करता विहंग समूह, भौरों का गुँजार तथा पुष्पों की मादकता से युक्त वसंत ऋतु की सजीवता प्रत्येक दिल में उल्लास, आनन्द, प्रेम व आकर्षण को बढ़ा देती है। चैत्र कृष्ण पक्ष की पंचमी को रंग खेलते हुए इस उत्सव का समापन किया जाता है। वसंत ऋतु ही एक ऐसी ऋतु है जो प्रत्येक कवि मन को कविता करने और प्रेमी-पेमिकाओं को आपस में रिझाने को विवश कर देती है।

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