अगर आपको खाँसी, दमा, पीलिया, ब्लडप्रेशर या दिल से संबंधित मामूली से लेकर गंभीर बीमारी है तो इससे छुटकारा पाने का एक सरल-सा उपाय है - शंख बजाइए और रोगों से छुटकारा पाइए। शंखनाद से आपके आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का नाश तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। ऐसा दावा करने वालों का कहना है कि शंख से निकलने वाली ध्वनि जहाँ तक जाती है वहाँ तक बीमारियों के कीटाणुओं का नाश हो जाता है। यह दावा करते हैं राजस्थान के भीलवाड़ा स्थित अंतरराष्ट्रीय ज्योतिष विज्ञान शोध संस्थान के अध्यक्ष और प्रसिद्ध ज्योतिषी सीताराम त्रिपाठी शास्त्री।
वे कहते हैं कि प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक जगदीशचंद्र बसु ने भी यह बात सिद्ध की थी कि शंखनाद से सकारात्मक ऊर्जा का सर्जन होता है जिससे आत्मबल में वृद्धि होती है। शंख में प्राकृतिक कैल्शियम, गंधक और फास्फोरस की भरपूर मात्रा होती है। वे बताते हैं कि आयुर्वेद चिकित्सक भी यह बात मानते हैं कि प्रतिदिन शंख फूँकने वाले को गले और फेफड़ों के रोग नहीं होते।
डॉ. त्रिपाठी ने शंखों की खोज में अपने जीवन के तीस साल लगाए हैं। इस दौरान गहन अध्ययन करके उन्होंने 1008 प्रकार के शंखों की खोज करने का दावा किया है। उनके पास समुद्री से लेकर पहाड़ी शंखों का दुर्लभ खजाना है। डॉ. त्रिपाठी की शंखों की खोज यात्रा तीस साल पहले हिमालय की पर्वतमालाओं से शुरू हुई। हिमालय में बद्रीनाथधाम से आगे भारत-चीन सीमा पर माणा गाँव होते हुए वे लक्ष्मीवन, सत्थोपंथ और स्वर्गारोहिणी की यात्रा पर थे।
इस दौरान उनकी भेंट एक मौनीबाबा से हुई। बाबा ने उनको सिद्धाम की दुर्लभ यात्रा के बारे में जानकारी देते हुए वहाँ स्वामी सच्चिदानंद से भेंट करने को कहा। यहाँ पर डॉ. त्रिपाठी को स्वामी सच्चिदानंद ने शंख संहिता नामक एक दुर्लभ ग्रंथ भेंट किया। उनसे दीक्षा लेकर डॉ. त्रिपाठी ने अपनी शंख खोज यात्रा शुरू की। इसके बाद वे हर साल एक बार हिमालय की यात्रा जरूर करते हैं। अपनी इन तीस सालों की हिमालय यात्राओं में वे पंचकेदार, पंचप्रयाग, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, जोशीमठ सहित पूरे पर्वतराज को खंगाल चुके हैं।
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डॉ. त्रिपाठी बताते हैं कि उनके शोध संस्थान में 109 प्रकार के शंखों की नियमित पूजा और शंखनाद होता है। उनके इस खजाने में भगवान कृष्ण के पांचजन्य और अर्जुन के देवदत्त नाम वाले शंखों से लेकर विभिन्न प्रकार के शंख मौजूद हैं। वे दावा करते हैं कि शंखों पर खोज करने वाले वे विश्व के एकमात्र शोधकर्ता हैं। उनकी खोज के 16 साल बीत जाने के बाद सन 1998 में भारत सरकार ने शंखों पर चार डाक टिकट जारी किए। ये डाक टिकट श्रीगणेश शंख, पांचजन्य शंख, गोमुखी शंख और नीलकंठ शंख पर जारी किए गए थे।
वे कहते हैं कि यह ज्योतिष के लिए गौरव की बात है कि एक ज्योतिषी खोजकर्ता की खोज पर पहली बार डाक टिकट जारी किए गए। डॉ. त्रिपाठी अपने अनुभवों के आधार पर बताते हैं कि समुद्री दुनिया में साठ हजार से भी ज्यादा प्रकार के शंख पाए जाते हैं, जिनकी अधिकतम लंबाई तीन फुट तथा वजन 40 किलो तक हो सकता है।
हिन्द महासागर, प्रशांत महासागर और अरब सागर में शंख बहुतायत में मिलते हैं। शंख एक प्रकार के समुद्री जीव का रक्षा कवच होता है। तांत्रिक, ज्योतिष, आयुर्वेदिक एवं वैज्ञानिक प्रभाव के कारण ये शंख इतने पवित्र और चमत्कारी हैं कि इनकी पूजा भगवान की प्रतिमा की तरह होती है। वेद-पुराणों में भी उल्लेख है कि जहाँ शंखनाद होता है वहाँ सभी प्रकार के अनिष्टों का नाश होता है।
मंदिरों, शुभ कार्यों, विवाह, यज्ञादि में शंख ध्वनि शुभ संदेश देती है। भारतीय संस्कृति में शंख को मांगलिक चिह्न एवं उपलब्धि को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। विभिन्न प्रकार के शंखों की उत्पति का ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड के 18वें अध्याय में पूरा आख्यान है। वेदों में भी शंखों को बड़ा महत्व दिया गया है।
अथर्ववेद में लिखा है- शंख ध्वनि से सभी राक्षसों का नाश होता है। यजुर्वेद के अनुसार युद्ध में शत्रुओं का हृदय दहलाने के लिए शंख फूँकने वाला व्यक्ति अपेक्षित है। सभी देवी-देवताओं ने अपने हाथ में विभिन्न प्रकार के शंख आयुध के रूप में धारण कर रखे हैं। अथर्ववेद के 'शंखमणि सूक्त में शंख की महिमा का विस्तृत वर्णन मिलता है।
पुलस्त्य संहिता, विश्वामित्र संहिता, लक्ष्मी संहिता, कश्यप संहिता, मार्कंडेय, गौरक्ष संहिता एवं कई प्राचीन ग्रंथों में शंख की दुर्लभ जानकारियाँ मिलती हैं। स्वर्ग के सुखों में आठ सिद्धियाँ एवं नव निधियों में शंख भी एक अमूल्य निधि है। शंख को दरिद्रतानाशक माना गया है। चरक संहिता, सुश्रुत संहिता एवं धन्वंतरि के अनुसार भी शंख का महत्व कम नहीं है।