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हम और नया सूरज

ईश्वर ज्ञान का भंडार

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भागदौड़ भरी भौतिकवादी जिंदगी में आपके पास सब कुछ है, अगर नहीं है तो सिर्फ समय। दूसरे के लिए तो छोड़िए स्वयं आपके लिए आपके पास समय नहीं है। इसी समयाभाव के कारण आप कई कार्य नहीं कर पाते और कई मर्तबा ये कार्य जिंदगी की रफ्तार ही रोक देते हैं। इसीलिए आपसे चाहिए आपके लिए दस मिनट। बदल जाएगी आपकी जिंदगी।

तुम लड़ते हो, क्यों? किसके लिए व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए, या आदर्शों के लिए? संघर्ष क्यों होते हैं, युद्ध क्यों चलते हैं? इन प्रश्नों पर कभी चिंतन किया है क्या आपने? यदि तनिक भी गहराई में बैठकर आप विचारेंगे तो स्वतः ज्ञान होगा कि यह सब कुछ होता है केवल अज्ञान के कारण।

अज्ञान एक ऐसा विष है जो सच को झूठ और झूठ को सच बना देता है। बुद्धि की मलिनता, मन की उच्छृंखलता केवल अज्ञान के कारण ही तो होती है। अज्ञान का अर्थ है सत्य को न जानना। व्यक्ति क्या है, क्या उसका लाभ है, क्या उसकी हानि है, उसके हित में क्या है, अहित में क्या है? वेद कहता है-

न वि जानामि यदि वेदमस्मि निण्य सन्नद्धो मनसा
चरामि। यदा मागन्‌ प्रथमजा ऋतस्यादिद्वाचो अश्नुते भागमस्याः

जो अपने को नहीं जानता वह अज्ञानी है क्योंकि अविश्वास के कारण वह सही निर्णय करने में असमर्थ रहता है। वस्तुतः जीवन जब अपने को विस्मृति के गर्त में डालकर भौतिक पदार्थों में लीन होकर अपने को उनमें संबंद्ध कर लेता है तब उसकी चेतना ज्ञान शक्ति लुप्त हो जाती है। मनुष्य अपने को भूलकर अपने उस रूप को ही अपना स्वरूप मान लेता है जो वह सोचता है। धन, पद, परिवार, शक्ति, जाति, देश, वर्ग की भावनाएँ तब सिर उठाती हैं और पशुता के भाव का विकास होने लगता है।

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क्या मेरा शरीर ही मैं हूँ, क्या यह छोटा-सा घर ही मेरा है, तब तक के लिए, कौन जानता है। अनंत जन्म हुए मेरे, यह मैं भूल गया, स्मरण है केवल आज, किंतु यह सत्य मुझे गिराता है इसलिए यह सत्य नहीं है। ईश्वर सत्य है, वह ज्ञान का भंडार है, आनंद का स्रोत है, उसका आकार नहीं, वह तो अणु-अणु में व्याप्त है। ब्रह्मांड का कोई स्थान नहीं, जहाँ वह न हो। वह सर्वशक्तिमान है। अर्थात्‌ अपने नियमों को चलाने के लिए उसे किसी का भी सहारा लेने की आवश्यकता नहीं।

सभी प्रकार की शक्तियों का केंद्र प्रेरक और दाता वह ही है। वह न्यायकारी है। न वह खुशामद से प्रसन्न होता है, न निंदा से रुष्ट। वह तो सभी को समान रूप से अपने-अपने कर्मों के अनुसार ही फल देता है। उसकी न्याय व्यवस्था में कहीं भी कोई दोष हो ही नहीं सकता। जो भक्तजन यह समझते हैं कि वह मान लेने से प्रसन्न होकर हमें औरों से अधिक कुछ दे देगा, वे भ्रम में है। आप जो भी बुरा काम करेंगे उसका दंड तो मिलेगा ही। वह क्षमा नहीं करता। अच्छे कर्मों का अच्छा फल भी मिलेगा, पर उसके बुरे कर्मों का दंड छूट नहीं सकता।

वह दयालु है। सभी को जीवन की उन्नति के लिए साधन जुटाता है। गर्भ में भी बच्चे को पालता है। उसने हमें शांति और आनंद प्राप्त करने के लिए बुद्धि दी है। लाखों रुपए से भी मूल्यवान इंद्रियाँ दी हैं। उसकी दया सभी पर समान है। पक्षपात से शून्य जैसे पिता सभी पुत्रों को पालता है वैसे ही प्रभु भी सभी जीवधारियों का पालन पोषण करता है।

वह अजन्मा है। न जन्म लेता है न मरता है। जिसका जन्म होगा, उसकी मृत्यु भी होगी। किंतु वह तो सदा से है, सदा रहेगा। देह-रूप आकार से परे वह प्रभु अजन्मा है। अर्थात्‌ कभी न उसका ह्रास होता है, न वृद्धि। वह अनन्त है। वह सर्वव्यापक है, सर्वत्र विद्यमान है। अतः वह असीम और अनंत है। न पाया किसी ने उसका परिवार।

सीमाओं के बंधन से दूर, ज्योतिर्मय प्रकाश के पुंज,
प्राणों के कण-कण में छाया, चिर अनंत वह,
जिसकी महिमा देख चकित-सा,
विश्व खड़ा है वह सस्मित सा।

वह ईश्वर निर्विकार है, उसमें कोई विकार हो ही कैसे सकता है, क्योंकि वह काल, मृत्यु, जरा जन्म सबसे दूर है। सदा एक सा रहने वाला है।

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