यहां पढ़ें आचार्य चाणक्य के सर्वश्रेष्ठ अनमोल विचार। चाणक्य नीति की वो पंद्रह बातें, जो आपको मालूम होनी चाहिए...।
1. संसार एक कड़वा वृक्ष है, जिसके दो फल ही मीठे होते हैं- एक मधुर वाणी और दूसरा सज्जनों की संगति।
2. मेहनत करने से दरिद्रता नहीं रहती, धर्म करने से पाप नहीं रहता, मौन रहने से कलह नहीं होता और जागते रहने से भय नहीं होता |
3. ब्राह्मणों का बल विद्या है, राजाओं का बल उनकी सेना है, वैश्यों का बल उनका धन है और शूद्रों का बल दूसरों की सेवा करना है। ब्राह्मणों का कर्तव्य है कि वे विद्या ग्रहण करें। राजा का कर्तव्य है कि वे सैनिकों द्वारा अपने बल को बढ़ाते रहें। वैश्यों का कर्तव्य है कि वे व्यापार द्वारा धन बढ़ाएं, शूद्रों का कर्तव्य श्रेष्ठ लोगों की सेवा करना है।
4. जिस व्यक्ति का पुत्र उसके नियंत्रण में रहता है, जिसकी पत्नी आज्ञा के अनुसार आचरण करती है और जो व्यक्ति अपने कमाए धन से पूरी तरह संतुष्ट रहता है। ऐसे मनुष्य के लिए यह संसार ही स्वर्ग के समान है।
5. वही गृहस्थी सुखी है, जिसकी संतान उनकी आज्ञा का पालन करती है। पिता का भी कर्तव्य है कि वह पुत्रों का पालन-पोषण अच्छी तरह से करें। इसी प्रकार ऐसे व्यक्ति को मित्र नहीं कहा जा सकता है, जिस पर विश्वास नहीं किया जा सके और ऐसी पत्नी व्यर्थ है जिससे किसी प्रकार का सुख प्राप्त न हो।
6. जो मित्र आपके सामने चिकनी-चुपड़ी बातें करता हो और पीठ पीछे आपके कार्य को बिगाड़ देता हो, उसे त्याग देने में ही भलाई है। चाणक्य कहते हैं कि वह मित्र उस बर्तन के समान है, जिसके ऊपर के हिस्से में दूध लगा है परंतु अंदर विष भरा हुआ होता है।
7. जिस अध्यात्मिक सीख का आचरण नहीं किया जाता वह जहर के समान है।
8. जिस गुरु के पास अध्यात्मिक ज्ञान नहीं है, उसे दूर करो।
9. निर्धन व्यक्ति के लिए लोगों का किसी सामाजिक या व्यक्तिगत कार्यक्रम में एकत्र होना जहर है।
10. जिसका पेट खराब है उसके लिए भोजन जहर है।
11. जिस व्यक्ति के पास दया और धर्म नहीं है उससे दूर रहो।
12. जिस पत्नी के चेहरे पर हरदम घृणा है उसे दूर करो। जिन रिश्तेदारों के पास प्रेम नहीं उन्हें दूर करो।
13. जब तक शरीर स्वस्थ और आपके नियंत्रण में है। उस समय आत्म साक्षात्कार के लिए उपाय अवश्य ही कर लेना चाहिए, क्योंकि मृत्यु के पश्चात कोई कुछ भी नहीं कर सकता।
14. विद्यार्जन करना एक कामधेनु के समान है, जो मनुष्य को हर मौसम में अमृत प्रदान करती है।
15. वही पत्नी अच्छी है जो पति को प्रसन्न करने वाली, शुचिपूर्ण, पारंगत, शुद्ध और सत्यवादी है।