माता कालिका के अनेक रूप हैं जिनमें से प्रमुख है- 1.दक्षिणा काली, 2.शमशान काली, 3.मातृ काली और 4.महाकाली। इसके अलावा श्यामा काली, गुह्य काली, अष्ट काली और भद्रकाली आदि अनेक रूप भी है। सभी रूपों की अलग अलग पूजा और उपासना पद्धतियां हैं। आओ जानते हैं दक्षिण काली क्या है और क्या है उनका मंत्र।
1. दशमहाविद्यान्तर्गत भगवती दक्षिणा काली (दक्षिण काली) की उपासना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि महाकाल की प्रियतमा काली ही अपने दक्षिण और वाम रूप में प्रकट हुई और दस महाविद्याओं के नाम से विख्यात हुई। बृहन्नीलतंत्र में कहा गया है कि रक्त और कृष्णभेद से काली ही दो रूपों में अधिष्ठित है। कृष्णा का नाम दक्षिणा और रक्तवर्णा का नाम सुंदरी है।
कराली, विकराली, उमा, मुञ्जुघोषा, चन्द्र-रेखा, चित्र-रेखा, त्रिजटा, द्विजा, एकजटा, नीलपताका, बत्तीस प्रकार की यक्षिणी, तारा और छिन्नमस्ता ये सभी दक्षिण कालिका के स्वरुप हैं।
2. दक्षिण काली मंत्र :
।। ॐ हूं ह्रीं दक्षिण कालिके खड्गमुण्ड धारिणी नम:।।
3. दक्षिण कालिका के अन्य मन्त्र :- भगवती दक्षिण कालिका के अनेक मन्त्र हैं, जिसमें से कुछ इस प्रकार है।
1.क्रीं,
2. ॐ ह्रीं ह्रीं हुं हुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रीं।
3. ह्रीं ह्रीं हुं हुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।
4. नमः ऐं क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा।
5. नमः आं क्रां आं क्रों फट स्वाहा कालि कालिके हूं।
6. क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हुं हुं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रींह्रीं ह्रीं हुं हुं स्वाहा।
उपरोक्त में से किसी भी मंत्र का तब जाप किया जा सकता है जबकि इसकी पूजा पद्धति और विविवत जाप की विधि ज्ञात हो। इसके बाद ध्यान, स्तुति और प्रार्थना के श्लोक भी होते हैं।