Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

गुड़ी पड़वा : नव संवत्सर में जीवन का संदेश

हमें फॉलो करें गुड़ी पड़वा : नव संवत्सर में जीवन का संदेश
चैत्रे मासि जगत् ब्रह्म ससर्ज प्रथमे हनि
शुक्ल पक्षे समग्रे तु सदा सूर्योदये सति।।


 
कहा जाता है कि ब्रह्मा ने सूर्योदय होने पर सबसे पहले चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि की संरचना शुरू की। उन्होंने इसे प्रतिपदा तिथि को प्रवरा अथवा सर्वोत्तम तिथि कहा था इसलिए इसको सृष्टि का प्रथम दिवस भी कहते हैं। इस दिन से संवत्सर का पूजन, नवरात्र, घटस्थापन, धवजारोहण, वर्षेश का फल पाठ आदि विधि-विधान किए जाते हैं। 
 
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा वसंत ऋतु में आती है। इस ऋतु में संपूर्ण सृष्टि में सुंदर छटा बिखर जाती है। विक्रम संवत के महीनों के नाम आकाशीय नक्षत्रों के उदय और अस्त होने के आधार पर रखे गए हैं। सूर्य, चंद्रमा की गति के अनुसार ही तिथियां भी उदय होती हैं। मान्यता है कि इस दिन दुर्गाजी के आदेश पर श्री ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। इस दिन दुर्गाजी के मंगलसूचक घट की स्थापना की जाती है।
 
उत्सवों का प्रारंभ
 
कहा जाता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में अवतार लिया था। सूर्य में अग्नि और तेज हैं और चन्द्रमा में शीतलता। शांति और समृद्धि के प्रतीक सूर्य और चन्द्रमा के आधार पर ही सायन गणना की उत्पत्ति हुई है। इससे ऐसा सामंजस्य बैठ जाता है‍ कि तिथि वृद्धि, तिथि क्षय, ‍अधिकमास, क्षय मास आदि व्यवधान उत्पन्न नहीं कर पाते। तिथि घटे या बढ़े, लेकिन सूर्यग्रहण सदैव अमावस्या को होगा और चन्द्रग्रहण सदैव पूर्णिमा को ही होगा।
 
नया संवत्सर प्रारंभ होने पर भगवान की पूजा करके प्रार्थना करनी चाहिए। हे भगवान! आपकी कृपा से मेरा वर्ष कल्याणमय हो, सभी विघ्न-बाधाएं नष्ट हों। दुर्गाजी की पूजा के साथ नूतन संवत् की पूजा करें। घर को वंदनवार से सजाकर पूजा का मंगल कार्य संपन्न करें। कलश स्थापना और नए मिट्टी के बर्तन में जौ बोएं और अपने घर में पूजास्थल में रखें। स्वास्थ्य को अच्‍छा रखने के लिए नीम की कोंपलों के साथ मिश्री खाने का भी विधान है। इससे रक्त से संबंधित बीमारी से मुक्ति मिलती है। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi