Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य ने धर्म, राजनीति, अर्थशास्त्र, शिक्षा, जीवन आदि कई विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। चाणक्य के अनुसार यदि जीवन में सफल होना है या सुख शांति से रहना है तो कुछ लोगों की संगति को त्याग देने में ही भलाई है अन्यता पछताओगे। आओ जानते हैं कि वे कौन लोग हैं जिनका त्याग करने देने में ही भलाई है अन्यथा वे लोग आपका समय और पैसा तो खाएंगे ही साथ में आपको मुसीबत में भी डाल देंगे।
त्यजेद्धर्म दयाहीनं विद्याहीनं गुरुं त्यजेत्।
त्यजेत्क्रोधमुखी भार्या निःस्नेहान्बान्धवांस्यजेत्॥- चाणक्य नीति
अर्थात : यदि धर्म में दया न हो तो ऐसे धर्म को त्याग देना चाहिए। इसी प्रकार विद्याहीन गुरु, क्रोधी पत्नी और स्नेहहीन सगे-संबंधियों को भी त्याग देना चाहिए।
1. दयाहीन धर्म : ऐसे धर्म का क्या लाभ जो लोगों के प्रति दयाभाव की शिक्षा नहीं देकर नफरत का पाठ पढ़ता हो। धर्म का गुण दया है। जिस धर्म में दया नहीं उसे त्याग देने में ही भलाई है। अन्यथा वह धर्म व्यक्ति को हिंसा के मार्ग पर ले जाएगा।
2. विद्याहीन गुरु : ऐसे गुरु या शिक्षक का क्या अर्थ जिसके पास विद्या या ज्ञान नहीं। जो खुद शिक्षित नहीं है वह दूसरों को क्या शिक्षित करेगा। जितनी जल्दी हो ऐसे गुरु का त्याग कर दें।
3. क्रोधी पत्नी : जो स्त्री दिनभर क्रोध करती हो, कलह कलेश करती हो उसके साथ रहने से जीवन नर्क के समान बन जाता है। खुशहाली समाप्त हो जाती है। ऐसी स्त्री का त्याग करने में ही भलाई है।
4. स्नेहहीन सगे-संबंधी : ऐसे रिश्तेदारों के यहां जाने या उन्हें बुलाने से क्या मतलब तो आपका भला नहीं सोच सकते या जो आपसे स्नेह नहीं रखते हैं। वे सिर्फ फायदे के लिए ही जुड़े हो तो ऐसे रिश्तेदार आपका कार्य सिद्ध करने के लिए आप का गलत इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसे रिश्तेदारों से भी तुरंत दूरी बना लेना चाहिए।
5. मित्र के रूप में स्वार्थी : इसके अलावा चाणक्य कहते हैं कि मित्र के रूप में यदि स्वार्थी व्यक्ति आपके साथ है तो वह आपका समय और पैसा दोनों खाता रहेगा लेकिन जब आपको मदद की जरूरत होगी तो वह साथ नहीं देगा। ऐसे मित्र की पहचान करने तुरंत ही उससे दूरी बना लें।
6. दुष्ट व्यक्ति : बुरे चरित्र वाले, अकारण दूसरों को हानि पहुंचाने वाले तथा अशुद्ध स्थान पर रहने वाले व्यक्ति के साथ जो पुरुष मित्रता करता है, वह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। आचार्य चाणक्य का कहना है मनुष्य को कुसंगति से बचना चाहिए। वे कहते हैं कि मनुष्य की भलाई इसी में है कि वह जितनी जल्दी हो सके, दुष्ट व्यक्ति का साथ छोड़ दें।
7. शत्रु का त्याग : अपने शत्रु को मूर्ख या दो पैर वाला पशु समझ कर त्याग देना ही उत्तम है, क्योंकि वह समय-समय पर अपने वाक्यों से हमारे ह्रदय को छलनी करता है वैसे ही, जैसे दिखाई न पड़ा पांवों में कांटा चुभ जाता है।