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कश्मीरी पंडितों की संस्कृति को जानिए, शिव से लेकर सरस्वती पूजन तक हर रिवाज है अलग

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, बुधवार, 23 मार्च 2022 (19:43 IST)
जब हम संस्कृति की बात करते हैं तो उसमें भाषा, भूषा, भोजन, रस्में और परंपरा सहित धर्म भी शामिल होता है। धर्म वह जो वहां का मूल धर्म है जिसे पंडितों का धर्म कहते हैं जो कि हिन्दू धर्म है।
 
 
धार्मिक परंपरा : कश्मीर में प्राचीनकाल से ही शिव और पार्वती की कथाओं और ज्ञान का चित्रण नाटक के रूप में होता आया है और यहां जो रामलीला होती है वह देश के अन्य भागों में होने वाली रामलीला से भिन्न होती है। शिवरात्रि पर पंडित समुदाय के घरों में कई दिन तक वटुक पूजा की जाती है। यहां माता शारदा की पूजा और मां दुर्गा की पूजा का प्रचलन है। शिवरात्रि से एक दिन पूर्व शुरू होने वाले हेरथ पर्व कश्मीरी हिंदू समाज का अहम त्योहार है। इसके अलावा कश्मीर में नवरेह नवचंद्र वर्ष के रूप में मनाया जाता है। संध्या चोग से पंडित संध्या में चिराग जलाते थे। हेराथ के अवलावा खेत्मावसी, ज़ायथ अथाम, टिकी त्सोराम, पन्ना और गाड़ बट्ट भी यहां के प्रमुख त्योहार है।
 
 
पकवान : कश्मीरी पंडित मूलत: शाकाहरी भोजन करता है लेकिन उन्हें मांसाहार से परहेज नहीं है। यहां जो व्यंजन बनते हैं वह बहुत ही लाजवाब है। यहां के भोजन में चावल विशेष रूप से रहता है। कश्मीरी पुलाव सबसे प्रसिद्ध है। पसंदीदा डिश है कर्म सग या हॉक। मटन भी खाया जाता है पर अब कम हो चला है। कश्मीरी पेय पदार्थों की बात करें तो उसमें नून चाय या शीर चाय और कहवा या केव शामिल हैं। इसके अलावा शीरमल, बकरखायन (पफ पेस्ट्री), लावा (अखमीरी रोटी) और कुल्चा भी लोकप्रिय हैं। कश्मीरी पंडितों को कुछ लोकप्रिय मांसाहारी व्यंजनों में मेथी कीमा, कबरगाह, रोगन जोश, त्सोएक ज़ारवन, स्यून आलू आदि शामिल है। शाकाहारी व्यंजनों में पनीर के साथ कई तरह के करी व्यंजन और कई तरह की सब्जियां शामिल हैं। ऑबर्जिन, आलू, कमल का तना, पालक, शलजम और राजमा कुछ ऐसी सब्जियां हैं जिनका उपयोग कश्मीर पंडित किया करते हैं। सरवरी और बजबट्टा चावल से बनने वाले व्यंजन हैं। खमेरी पुरी कश्मीरी पंडितों के व्यंजनों में गेहूं से बनी लोकप्रिय रोटी है। कश्मीरी पंडितों ने ही भारतीय व्यंजनों में दही, हींग और हल्दी पाउडर के इस्तेमाल की शुरुआत की।
 
 
पोशाक : मूल रूप से एक व्यापक ढीला गाउन होता है जो टखने से गर्दन पर लटका होता है, जिसमें बड़े बड़े बटन लगाए जाते हैं। यह शेरवानी से अलग होता है। सर्दियों के मौसम में यह ऊन से बना है जबकि गर्मियों में महीने में कपास का उपयोग किया जाता है। महिलाओं के गाऊन अलग होता है जो बहुत ही सुंदर काश्तकारी किए हुए होता है। दोनों के ही गाऊन को फेहेन कहा जाता है जिसमें कम ही अंतर होता है। पुरष एक ढीला पायजामा फेयरन के नीचे पहनते हैं। महिलाओं के सिर पर सुंदर चुनर होती है। सिर पर सुंदर लाल रंगी की पट्टीका होती है जिमें से झूमर जैसे लटकन होती है। 
 
कलाकारी : कश्मीर के बर्तनों पर बहुत ही सुंदर कलाकारी या नक्कशी देखने को मिलती है। इन बर्तनों की नक्काशी में उनकी संस्कृति छिपी हुई है। इसके अलावा चित्रकारी में कश्मीरी पंडितों की संस्कृति और देवी देवताओं को दर्शाया गया।
 
नशा : कश्मीर में अधिकांश ठंड का जीवन व्यतीत करने वाले पंडित समुदाय में जजीर यानी हुक्का भी प्रमुख भूमिका निभाता रहा है। वहीं कांगड़ी भी पंडितों के जीवन से जुड़ी रही है। 
 
भाषा : कश्मीरी पंडितों की भाषा कश्मीरी के साथ ही कोशूर, डोगरी, हिंदी भी है। पहले कश्मीरी भाषा शारदा लिपि में लिखी जाती थी।
 
नाटक : भरत नाट्य शास्त्र कला एक है जो भारत में नृत्य, संगीत और साहित्यिक परंपराओं को प्रभावित किया है, कश्मीर में जन्म लिया है पर एक प्राचीन विश्वकोश ग्रंथ के रूप में उल्लेखनीय है।
 
संगीत : चकरी, हेनज़ाई, रूफ या वानवुन आदि वहां का प्रसिद्ध संगीत हैं। लेडीशाह: सूफियाना कलाम भी प्रचलित है।

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