* पढ़ें श्री गणेशजी की गांव भ्रमण की मजेदार कहानी
एक बार गणेशजी एक छोटे से बालक का रूप रखकर एक गांव में आए। वे देखना चाहते थे कि इस पृथ्वी पर कुछ धर्म-कर्म है या नहीं? वे चिमटी में चावल और चमची में दूध लेकर गांव में घर-घर घूमकर कहते कि मेरे लिए खीर बना दो।
लोग उसकी बात सुनकर उसे देखने आते और हंसी उड़ाते। सब लोग उससे कहते कि इतने से दूध-चावल से भी कोई खीर बनती है? लोगों का उत्तर सुनकर बालक आगे को चल देता।
इस प्रकार चलते-चलते बालक अंत में एक बुढ़िया के पास पहुंचा। वहां बहुत से बच्चे खेल रहे थे और बुढ़िया बैठी-बैठी बच्चों के खेल का आनंद ले रही थी।
गणेशजी ने कहा- मां, इन चावल और दूध से मेरे लिए खीर बना दो। बुढ़िया ने हंसकर मजाक करते हुए कहा- बेटा, खीर तो बना दूं, परंतु मुझे भी खीर देगा कि नहीं।
लड़के ने कहा- जरूर आपको दूंगा और सब बच्चों को भी दूंगा। तब तो बुढ़िया घर के अंदर से एक छोटी-सी भगोनी लेकर आई।
लड़के ने कहा- मां, इतनी-सी छोटी भगोनी से क्या होगा। आप बड़ा सा बर्तन लाओ, उसमें खीर बनाना। बुढ़िया फिर से एक बड़ा बर्तन लेकर आई। उसमें दूध और चावल डलवा दिए और चूल्हे पर खीर बनाने के लिए रख दी।
खीर उफनने लगी तो बुढ़िया ने थोड़ी सी खीर प्याले में निकाल ली। थोड़ी-सी ठंडी करके, गणेशजी का नाम लेकर (भोग लगाकर) चखने लगी। खीर तो बहुत स्वादिष्ट बनी थी।
बुढ़िया के लड़के को आवाज लगाई, ले बेटा खीर बन गई, खा ले। लड़के ने कहा, मां, खीर से तो मेरा पेट भर गया, अब आप खाओ और इन सब बच्चों को खिला दो।
बुढ़िया ने कहा- बेटा, तूने खीर तो खाई नहीं, फिर पेट कैसे भर गया? लड़के ने कहा- आपने मेरा प्रेम से नाम लेकर दरवाजे के पीछे खड़े होकर खीर खाई थी, उससे मेरा पेट भर गया।
बुढ़िया समझ गई कि यह बालक तो साक्षात गणेशजी का रूप है। वह खीर सभी बच्चों को, जो वहां खेल रहे थे, उन्हें भी खिलाई तो भी बर्तन भरा हुआ था। अब गांव के सभी लोगों को बुला-बुलाकर बुढ़िया ने खीर खिलाई, तो सभी आश्चर्य करने लगे।
अंत में बुढ़िया को गणेशजी ने आशीर्वाद दिया कि जैसे खीर को छेव नहीं आयो, वैसे ही थारा घर में कोई छेव नहीं आएगा। बुढ़िया अब तो आनंद और ठाठ-बाट से रहने लगी।