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क्या आप जानते हैं महाभारत के पांडु की यह कथा...

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महाभारत के आदिपर्व के अनुसार एक दिन राजा पांडु आखेट के लिए निकलते हैं। जंगल में दूर से देखने पर उनको एक हिरण दिखाई देता है। वे उसे एक तीर से मार देते हैं। वह हिरण एक ऋषि निकलते हैं तो अपनी पत्नी के साथ मैथुनरत थे। वे ऋषि मरते वक्त पांडु को शाप देते हैं कि तुम भी मेरी तरह मरोगे, जब तुम मैथुनरत रहोगे। इस शाप के भय से पांडु अपना राज्य अपने भाई धृतराष्ट्र को सौंपकर अपनी पत्नियों कुंती और माद्री के साथ जंगल चले जाते हैं।


 
जंगल में वे संन्यासियों का जीवन जीने लगते हैं, लेकिन पांडु इस बात से दुखी रहते हैं कि उनकी कोई संतान नहीं है और वे कुंती को समझाने का प्रयत्न करते हैं कि उसे किसी ऋषि के साथ समागम करके संतान उत्पन्न करनी चाहिए। कुंती पर-पुरुष के साथ नहीं सोना चाहती तो पांडु उसे यह कथा सुनाते हैं।
 
प्राचीनकाल में स्त्रियां स्वतंत्र थीं और वे जिसके साथ चाहें उसके साथ समागम कर सकती थीं, जैसे पशु-पक्षी करते हैं। केवल ऋतुकाल में पत्नी केवल पति के साथ समागम कर सकती है अन्यथा वह स्वतंत्र है। यही धर्म था, जो नारियों का पक्ष करता था और सभी इसका पालन करते थे।
 
एक उद्दालक नाम के प्रसिद्ध मुनि थे जिनका श्वेतकेतु नाम का एक पुत्र था। एक बार जब श्वेतकेतु अपने माता-पिता के साथ बैठे थे, एक ब्राह्मण आया और श्वेतकेतु की मां का हाथ पकड़कर बोला, 'आओ चलें।' अपनी मां को इस तरह जाते हुए देख कर श्वेतकेतु बहुत क्रुद्ध हुए किंतु पिता ने उनको समझाया कि नियम के अनुसार स्त्रियां गायों की तरह स्वतंत्र हैं जिस किसी के भी साथ समागम करने के लिए। इन्हीं श्वेतकेतु के द्वारा फिर यह नियम बनाया गया कि स्त्रियों को पति के प्रति वफादार होना चाहिए और पर-पुरुष के साथ समागम करने का पाप भ्रूणहत्या की तरह होगा।
 
पांडु और भी कथाएं सुनाते हैं और कुंती को विश्वास दिला देते हैं कि पर-पुरुष के साथ संतान पैदा करने से उन्हें पाप नहीं लगेगा।

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