Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

त्रेतायुग में हुआ था गणेशजी का मयूरेश्वर अवतार

हमें फॉलो करें त्रेतायुग में हुआ था गणेशजी का मयूरेश्वर अवतार

अनिरुद्ध जोशी

मोदक प्रिय श्री गणेशजी विद्या-बुद्धि और समस्त सिद्धियों के दाता हैं तथा थोड़ी उपासना से ही प्रसन्न हो जाते हैं। उन्हें हिन्दू धर्म में प्रथम पूज्य देवता माना गया है। किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के पूर्व उन्हीं का स्मरण और पूजन किया जाता है। गणेशजी ने तीनों युग में जन्म लिया है और वे आगे कलयुग में भी जन्म लेंगे।


धर्मशात्रों के अनुसार गणपति ने 64 अवतार लिए, लेकिन 12 अवतार प्रख्यात माने जाते हैं जिसकी पूजा की जाती है। अष्ट विनायक भी भी प्रसिद्धि है। आओ जानते हैं उनके त्रेतायुग के अवतार मयूरेश्वर के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
 
 
1. त्रेतायुग में गणपति ने उमा के गर्भ से भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन जन्म लिया और उन्हें गुणेश नाम दिया गया। 
 
2. त्रेता युग में उनका वाहन मयूर है, वर्णन श्वेत है तथा तीनों लोकों में वे मयूरेश्वर-नाम से विख्यात हैं और छ: भुजाओं वाले हैं।
 
3. इस अवतार में गणपति ने सिंधु नामक दैत्य का विनाश किया व ब्रह्मदेव की कन्याएं, सिद्धि व रिद्धि से विवाह किया था।
 
4. एक अन्य कथानुसार देवताओं को दैत्यराज सिंधु के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने हेतु गणेश ने मयूरेश्वर का अवतार लिया था। इस प्रसंग में उन्होंने माता पार्वती से कहा कि माता मैं विनायक दैत्यराज सिंधु का वध करूंगा। तब माता पिता के आशीर्वाद से मोर पर बैठकर गणपति ने दैत्य सिंधु की नाभि पर वार किया तथा उसका अंत कर देवताओं को विजय दिलवाई। इसलिए उन्हें 'मयूरेश्वर' की पदवी प्राप्त हुई।
 
5. जहां भी गणेशजी ने अवतार लिया या सिंधुरासुर दैत्य का वध किया था वह स्थान महाराष्ट्र के पुणे के पास मोरगांव में स्थिति है।
 
6. मोरगांव का श्री मयूरेश्वर मंदिर अष्टविनायक के आठ प्रमुख मंदिरों में से एक है। यह गांव करहा नदी के किनारे पुणे से 80 किलोमीटर दूर स्थित है
 
7. कहते हैं कि मोरगांव का नाम मोर पर पड़ने की भी एक कथा है इसके अनुसार एक समय था जब यह स्थान मोरों से भरा हुआ था। यहां पर शिवजी ने अपने गण नंदी के साथ विश्राम किया था और नंदी को यह जगह इतनी पसंद आई की वे यही रहना चाहते थे। यह भी कहा जाता है कि गणपति को मयूरेश्वर इसलिए कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने 'मोरेश्वर' में रहने का निश्चय किया और मोर की सवारी की।
 
8. एक किंवदंती यह भी है कि ब्रह्मा ने सभी युगों में भगवान गणपति के अवतार की भविष्यवाणी की थी, मयूरेश्वर त्रेतायुग में उनका अवतार थे। गणपति के इन सभी अवतारों ने उन्हें उस विशेष युग के राक्षसों को मारते हुए देखा। 
 
9. मयूरेश्वर मंदिर की मूर्ति यद्यपि आरम्भ में आकार में छोटी थी, परंतु दशक दर दशक इस पर सिन्दूर लगाये जाते रहने के कारण यह आजकल बड़ी दिखती है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने इस मूर्ति को दो बार पवित्र किया है, जिससे यह अविनाशी हो गई है। 
 
10. महाराष्ट्र के अष्ट विनायक- 1- मयूरेश्वर या मोरेश्वर मंदिर, पुणे, 2- सिद्धिविनायक मंदिर, अहमदनगर, 3- बल्लालेश्वर मंदिर, रायगढ़, 4- वरदविनायक मंदिर, रायगढ़, 5- चिंतामणी मंदिर, पुणे, 6- गिरिजात्मज अष्टविनायक मंदिर, पुणे, 7- विघ्नेश्वर अष्टविनायक मंदिर, ओझर और 8- महागणपति मंदिर, राजणगांव।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

June 2021 Weekly Horoscope : कैसा होगा आपके लिए नया सप्ताह, जानें साप्ताहिक राशिफल