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संक्रांति और 84 महादेव : श्री अरुणेश्वर महादेव का पूजन शुभ

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कु. सीता शर्मा

इस बार सूर्य भगवान का मकर राशि मे प्रवेश काल अर्ध रात्रि  में आने से मकर संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी के दिन आ रहा है। इसलिए यह पर्व 15 जनवरी के दिन पूर्णकाल में ही मनाया जाए। ज्योतिष गणना के अनुसार इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि की मकर राशि में प्रवेश करेंगे। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी है अतः इस प्रवेश काल दिन को ही मकर संक्रांति कहा जाता है। इस दिन मलमास समाप्त होकर सभी शुभ कार्य आरंभ होते है। 
ऐसा क्यों होता है :- 
पृथ्वी अपनी धूरी पर घुमते हुए प्रतिवर्ष 55 विकला या 72 से 90 सालो में एक अंश पीछे रह जाती है। इससे सूर्य मकर राशि में एक दिन देरी से प्रवेश करता है। करीब 1700 साल पहले 22 दिसंबर को मकर संक्रांति मनाई जाती थी। इसके बाद पृथ्वी के घूमने की गति चलते यह धीरे-धीरे दिसंबर के बजाय जनवरी में आ गई। 

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मकर संक्रांति का समय हर 80 से 100 साल में एक दिन आगे बढ़ जाता है। 19वीं शताब्दी में कई बार मकर संक्रांति 13 व 14 जनवरी को मनाई जाती थी। पिछले तीन साल से लगातार संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को मनाया जा रहा है। 2017 और 2018 में संक्रांति 14 जनवरी की शाम को अर्की होगी। 
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पौराणिक दृष्टि से मकर संक्रांति इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन मां गंगा सागर में जा मिली थी। आज भी कोलकाता में गंगा सागर में मेला लगता है और महाभारत काल के भीष्म पितामाह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। इसके बाद सूर्य भगवान दक्षिणायन से 16 जनवरी को उत्तरायण हो जाते हैं। चूंकि अवंतिका तीर्थ में तिल भर बड़ी होने से इस पर्व का यहां विशेष महत्व रहता है। 
 
विशेष : क्षिप्रा में स्नान कर 84 महादेव के अंतर्गत 76वें नंबर पर सूर्य ग्रह के आधिपत्य वाले श्री अरुणेश्वर महादेव का पूजन अभिषेक कर तिल-गुड़ का दान करना चाहिए। यह मंदिर उज्जैन में रामघाट पर स्थित है। 
  
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