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भारत के आदिवासियों का मूल धर्म कौन-सा है?

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WD Feature Desk

, बुधवार, 6 अगस्त 2025 (15:26 IST)
आदिवासी का अर्थ होता है जो आदिकाल या प्रारंभ से ही यहां का वासी है। जनजाति को आदिवासी भी कहते हैं। आदिवासी को वनवासी से जोड़कर भी देखते हैं। यदि हम भारतीय आदिवासियों की बात करें तो इनका इतिहास 400 पीढ़ियों पूर्व से प्रारंभ होता है। 400 पीढ़ियों पूर्व वन में तो सभी भारतीय रहते थे लेकिन विकास के कारण पहले ग्राम बने फिर कस्बे और अंत में नगर। यहीं वनवासी लोग ग्राम, कस्बे और नगर में बसते गए। वन में रह गए लोग वनवासी, ग्राम में बस गए लोग ग्रामवासी और नगर में बस गए लोग नगरवासी कहलाये जाने लगे। बाद में तीनों क्षेत्रों की भाषा, भूषा और भोजन में भी बदलाव आते गए इससे उनकी पहचान अलग अलग निर्मित होने लगी।
 
भारत में रहने वाला हर व्यक्ति आदिवासी है लेकिन चूंकि विकासक्रम में भारतीय वनों में रहने वाले आदिवासियों ने अपनी शुद्धता बनाए रखी और वे जंगलों के वातावरण में खुले में ही रहते आए हैं तो उनकी शारीरिक संवरचना, रंग-रूप, परंपरा और रीति रिवाज में कोई खास बदलावा नहीं हुआ। हालांकि जो आदिवासी अब गांव, कस्बे और शहरों के घरों में रहने लगे थे उनमें धीरे धीरे बदलवा जरूर आए लेकिन सभी के डीएनए एक ही हैं। डीएनए से ही हमें पता चलता है कि शहरों में और जंगलों में रहने वाले किस तरह एक ही जाति की संतानें हैं।
 
आदिवासियों का मूल धर्म: भारत में लगभग 461 जनजातियां हैं। उक्त सभी आदिवासियों का मूल धर्म शैव, भैरव, शाक्त और सरना धर्म है, लेकिन धर्मांतरण के चलते अब यह ईसाई, मुस्लिम और बौद्ध भी हो चले हैं। मूल में यह सभी शैव धर्मी है। इनमें प्राचीनाकल से वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग या पत्थर रखकर पूजा का प्रचलन रहा है। मतलब शिव और भैरव इनके प्रमुख देवता हैं। साथ ही ये प्रकृतिक के सभी तत्वों की पूजा करते हैं।
 
शैव धर्मी है आदिवासी: भारत के आदिवासियों का धर्म क्या है इस संबंध में कई तरह के भ्रम पैदा किए जाते हैं। यह भ्रम 300 वर्षों से जारी हैं और आधुनिक काल की राजनीति के चलते भी हैं। लेकिन सचाई ये हैं कि भारत के आदिवासियों का मूल धर्म शैव है। वे भगवान शिव की मूर्ति नहीं शिवलिंग की पूजा करते हैं। उनके धर्म के देवता शिव के अलावा भैरव, कालिका, दस महाविद्याएं और लोक देवता, कुल देवता, ग्राम देवता हैं। भारत के हिन्दू धर्म में उन्हीं प्राचीन आदिवासियों का धर्म मिश्रित हो चला है जिसे शैव कहा गया है।
 
भारत की प्राचीन सभ्यता में भी शिव और शिवलिंग से जुड़े अवशेष प्राप्त होते हैं जिससे यह पता चलता है कि प्राचीन भारत के लोग शिव के साथ ही पशुओं और वृक्षों की पूजा भी करते थे। भगवान शिव को आदिदेव, आदिनाथ और आदियोगी कहा जाता है। आदि का अर्थ सबसे प्राचीन प्रारंभिक, प्रथम और आदिम। शिव आदिवासियों के देवता हैं। शिव खुद ही एक आदिवासी थे। आर्यों से संबंध होने के कारण आर्यो ने उन्हें अपने देवों की श्रेणी में रख दिया। आर्य लोग शिव की पूजा नहीं करते थे लेकिन आदिवासियों के देवता तो प्राचीनकाल से ही शिव ही रहे हैं।
 
मूल रूप से आदिवासियों का अपना धर्म है। ये शिव एवं भैरव के साथ ही प्रकृति पूजक हैं और जंगल, पहाड़, नदियों एवं सूर्य की आराधना करते हैं। इनके अपने अलग लोक देवता, ग्राम देवता और कुल देवता हैं। जैसे नागवंशी आदिवासी और उनकी उप जनजातियां नाग की पूजा करते हैं। सिंधु घाटी की सभ्यता में शिव जैसी पशुओं से घिरी जो मूर्ति मिली है इससे यह सिद्ध होता है कि आदिवासियों का संबंध सिंधु घाटी की सभ्यता से भी था।

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