Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

Islam : इस्लाम के लिए इन ब्राह्मणों ने अपनी जान दे दी थी?

हमें फॉलो करें islam

WD Feature Desk

, शुक्रवार, 17 मई 2024 (12:38 IST)
Hussaini Brahmin: ऐसा कहा जाता है कि ब्राह्मणों के एक विशेष वर्ग का शिया मुस्लिमों से गहरा संबंध है। इतिहास के पन्नों में दर्ज इस कहानी का कम ही जिक्र किया जाता है कि एक ऐसा भी समय था जबकि ब्राह्मणों ने इस्लाम के लिए अपनी जान भी दे दी थी। लेकिन फिर एक ऐसा भी समय आया जब इस्लाम ने बड़े पैमाने पर ब्राह्मणों की जान भी ले ली। आओ जानते हैं कि क्या है कहानी।
यह कहानी 1400 साल पहले कि है जबकि 'कर्बला की जंग' लड़ी गई थी। हुसैन इब्न अली (इमाम हुसैन), उनके परिवार और 72 अनुयायियों की कर्बला के युद्ध में शहादत हो गई थी। भारत में एक ऐसा ब्राह्मण समुदाय आज भी रहता है जिसके पूर्वजों का इमाम हुसैन की लड़ाई से जुड़ाव रहा है। ये समुदाय है हुसैनी ब्राह्मण। ये वो समुदाय है जिसने हुसैन इब्न अली यानी इमाम हुसैन की कर्बला की लड़ाई में सहायता के लिए गए थे।
 
कर्बला में बादशाह यज़ीद की हुकूमत थी। वह जानता था कि जब तक नबी मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन जिंदा हैं तब तक वो अपनी मर्जी से काम नहीं कर सकता है। एक षड़यंत्र के तहत उसने इमाम हुसैन और उनके परिवार को दरिया-ए-फरात के किनारे घेर लिया। चारों ओर से भोजन पानी रोक दिया ताकी सभी भूखे मर जाए। 
 
ऐसी परिस्थिति में इमाम हुसैन ने अपने बचपन के दोस्त हबीब को खत लिखकर मदद के लिए बुलाया। दूसरा खत कर्बला से बहुत दूर भारत के एक हिंदू राजा मोहयाल राजा राहिब सिद्ध दत्त के नाम भेजा जो उनका भाई जैसा दोस्त था। राहिब सिद्ध दत्त एक मोहयाल ब्राह्मण थे। इमाम हुसैन का खत मिलते ही राहिब दत्त मोहयाल ब्राह्मणों की सेना के साथ कर्बला के लिए निकल पड़े। जब तक वे और उनकी सेना वहां पहुंचती तब तक इमाम हुसैन को शहीद किया जा चुका था।
रास्ते में जब राहिब दत्त को इस बात का पता चला तो उनका दिल टूट गया। तेश में आकर उन्होंने अपनी तलवार से अपनी गर्दन काटना चाही यह कहते हुए कि  जान बचाने आए थे लेकिन दोस्त ही नहीं बचा तो अब हम जीकर क्या करेंगे।... उस वक्त इमाम हुसैन के खास अमीर मुख़्तार ने उनको रोका और इसके बाद मुख्तार और राहिब दोनों एक साथ मिलकर इमाम हुसैन के खून का बदला लेने के लिए निकल पड़े। ये तारीख थी 10 अक्टूबर 680 ईसवी की।
 
कहते हैं कि उस समय यजीद की फौज इमाम हुसैन के सिर को लेकर कूफा में इब्ने जियाद के महल ला रही थी। राहिब दत्त ने यजीद के दस्ते का पीछा कर इमाम हुसैन का सिर छीन लिया और दमिश्क की ओर निकल गए। रास्ते में एक पड़ाव पर रात बिताने के लिए रुके थे। वहां यजीद की फ़ौज ने उन्हें घेर लिया।
 
यजीद की फौज ने हुसैन के सिर की मांग की। राहिब दत्त ने इसे देने से इनकार कर दिया। इसके बाद भयानक जंग हुई जिसमें राहिब दत्त के सातों बेटे शहीद हो गए लेकिन राहिब दत्त ने बहादुरी से लड़ते हुए चुन-चुन कर इमाम हुसैन के कातिलों से बदला लिया। उन्हें हिंदुस्तानी तलवार के जौहर दिखाए। अंत में कूफे के सूबेदार इब्ने जियाद के किले पर कब्जा कर उसे गिरा दिया। जंग-ए-कर्बला में इन मोहयाली सैनिकों में कई वीरगति को प्राप्त हुए।
जंग खत्म होने के बाद कुछ मोहयाली सैनिक वहीं बस गए और बाकी अपने वतन हिंदुस्तान वापस लौट आए। इन वीर मोहयाली सैनिकों ने कर्बला में जहां पड़ाव डाला था उस जगह को 'हिंदिया' कहते हैं।  
 
हुसैनी ब्राह्मण समाज के लोग वर्तमान में अरब, कश्मीर, सिंध, पाकिस्तान, पंजाब, महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली और भारत के अन्य हिस्सों में रहते हैं। इस समुदाय के लोग भी हजरत हुसैन की शहादत के गम में मातम और मजलिस करते हैं। वर्तमान में कई प्रसिद्ध हस्तियां इसी समुदाय से संबंध रखती हैं। जैसे स्वर्गीय सुनील दत्त हुसैनी ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके अलावा अभिनेत्री योगिता बाली, शास्त्रीय संगीत गायिका सुनीता झिंगरान, उर्दू लेखक कश्मीरी लाल जाकिर, साबिर दत्त और नंद किशोर विक्रम हुसैनी ब्राह्मण समुदाय से जुड़े नाम हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Mahavir swami: महावीर स्वामी को कैवल्य ज्ञान कब प्राप्त हुआ था?