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क्यों अपनी मौसी के घर जाते हैं भगवान जगन्नाथ? यहां जानिए वजह

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WD Feature Desk

, गुरुवार, 12 जून 2025 (16:57 IST)
why lord jagannath visits his aunts house know the spiritual reason: हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को ओडिशा के पुरी में निकलने वाली भव्य जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति और प्रेम का अनुपम संगम है। इस यात्रा की सबसे अनूठी परंपराओं में से एक है भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा का अपनी मौसी गुंडिचा देवी के घर जाना। यह जिज्ञासा अक्सर लोगों के मन में उठती है कि आखिर क्यों भगवान स्वयं अपनी मौसी के घर जाते हैं? आइए जानते हैं इस अद्भुत परंपरा के पीछे की पौराणिक कथाएं और महत्व।

भगवान जगन्नाथ के मौसी के घर जाने की पौराणिक कथाएं:
कई पौराणिक कथाएं इस परंपरा के पीछे की वजह बताती हैं:
• बहन की इच्छा पूर्ण करने की कथा: एक प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार बहन सुभद्रा ने नगर भ्रमण की इच्छा प्रकट की। उनकी इच्छा को पूरा करने के लिए भगवान जगन्नाथ और बलभद्र उन्हें रथ पर बैठाकर नगर दिखाने के लिए निकल पड़े। नगर भ्रमण के दौरान वे तीनों अपनी मौसी गुंडिचा देवी के घर भी पहुंचे। मौसी के घर उन्हें खूब आतिथ्य मिला और वे वहां कुछ दिन ठहरे। इसी घटना की स्मृति में हर साल यह रथ यात्रा निकाली जाती है और भगवान अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं।
• गुंडिचा देवी का सम्मान: एक अन्य मान्यता यह भी है कि गुंडिचा मंदिर वही स्थान है जहाँ भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों का निर्माण देवशिल्पी विश्वकर्मा ने किया था। राजा इंद्रद्युम्न की रानी गुंडिचा के आग्रह पर ही यह मंदिर बनवाया गया था। इसलिए भगवान जगन्नाथ गुंडिचा देवी को अपनी मौसी मानते हैं और उनका सम्मान करते हुए उनके घर जाते हैं। वहां उनकी मौसी उन्हें विशेष पकवान जैसे "पादोपीठा" और रसगुल्ले खिलाकर उनका स्वागत करती हैं।

रथ यात्रा का महत्व और संदेश:
पुरी रथ यात्रा केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि जीवन में रिश्तों की गहराई और सेवा भावना का भी प्रतीक है। भगवान का हर साल अपनी मौसी के घर जाना हमें यह भी सिखाता है कि संस्कारों और संबंधों की डोर कभी नहीं टूटती। यह यात्रा भक्तों को भगवान से सीधा जुड़ने का अवसर प्रदान करती है, क्योंकि इस दौरान भगवान अपने गर्भ गृह से बाहर आकर भक्तों को दर्शन देते हैं।


गुंडिचा मंदिर में प्रवास:
अपनी मौसी के घर, जिसे गुंडिचा मंदिर या गुंडिचा बाड़ी भी कहा जाता है, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा लगभग सात दिनों तक विश्राम करते हैं। इस दौरान उनकी खूब सेवा की जाती है और उन्हें स्वादिष्ट पकवानों का भोग लगाया जाता है। कहा जाता है कि मौसी के आव-भगत और पकवानों से कभी-कभी भगवान का पेट भी खराब हो जाता है, जिसके लिए उन्हें विशेष पथ्य और औषधियां भी दी जाती हैं।

इस प्रकार, भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा और उनका अपनी मौसी के घर जाना, सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि मानवीय रिश्तों की मधुरता, स्नेह और आत्मीयता का एक जीवंत उदाहरण है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और हर साल लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है, जो इस भव्य उत्सव का हिस्सा बनकर स्वयं को धन्य मानते हैं।


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