भाइयों, पहले आप वहाँ जाइए, जहाँ गत वर्ष आपने प्रतिमाएँ विसर्जित की थीं। मेरा ख्याल है कि आपको वहाँ पिछले वर्ष की मूर्तियों के कुछ अंश जरूर मिल जाएँगे।
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परंतु आज इसका पालन नहीं होता? हम बेचारे अनेक गाँव वालों या अनपढ़ लोगों को अंधविश्वास से दूर रहने का पाठ पढ़ाते हैं परंतु विषैले रसायनों से युक्त मूर्तियाँ अपने घरों में, दफ्तरों में बैठाते हैं।
जबकि हम स्वयं को पढ़ा-लिखा या ग्रेजुएट या इंजीनियर या डॉक्टर- कलेक्टर कहते हैं। इसलिए आओ संकल्प लें कि केवल मिट्टी की या रेत की प्रतिमा ही हम हमारे घर या दफ्तर में स्थापित करेंगे अन्यथा गणेशजी को केवल उनके मंदिर में जाकर मना लेंगे।