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आचरण में लाएँ स्नेह की शुद्धता

- कुमुदिनी देशपांडे

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स्नेह देना, स्नेह लेना, और स्नेही से ही सामने वाले का प्रेम अर्थात्‌ स्नेह संपादित करना, यह हमें मालूम है। परंतु हम इसे अपने आचरण में लाने का प्रयत्न नहीं करते। यदि हम इसका अर्थ समझकर दैनंदिन जीवन में इसे अपना लें तो निश्चित ही जीवन सफल होगा।

प्रेम-भावना से व्यवहार करके हम जीवन में जरूर सफल होंगे। सामने वाले व्यक्ति पर प्रेम, आदर, अपनापन, जैसी भावनाओं को उड़ेलते रहेंगे, तो हमें निश्चित ही लाभ होगा।

लेकिन ऐसी भावनाओं के लिए हमें भी अपना बर्ताव शुद्ध, सात्विक, निर्अभिमानी बनाना जरूरी है। दूसरों के दोषों पर निरर्थक बातें करने की बजाए उनके गुणों को परखें तथा उनकी प्रशंसा करें। गुणों की प्रशंसा करने से, वह व्यक्ति निश्चित ही हमारा अपनत्व समझेगा, और उससे हमारे संबंध प्रगाढ़ होंगे। और साथ ही एक सद्भावना पनपेगी। आज इस स्नेह के अभाव से ही घरों में, कार्यालयों में समाज में सौहार्द का वातावरण समाप्त हो रहा है।

घर में माता-पिता, बच्चे, सास-बहू यदि आपस में इन भावनाओं के साथ समझदारी से रहने का प्रयत्न करें तो आनंद से रह सकेंगे। इसी तरह समाज में सुख-शांति का वातावरण निर्माण करने के लिए, प्रत्येक धर्म तथा व्यक्ति के विचारों का आदर करना बहुत आवश्यक है। इससे निश्चित ही एकात्मकता का निर्माण होगा।

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याद रखना होगा कि मानव-जन्म दुर्लभ है और हम थोड़े समय के लिए ही पृथ्वी पर आए हैं। यानी हमारा जीवन क्षणभंगुर है, यही जीवन का सत्य है। जीवन यदि क्षणभंगुर है, तो हमें इस मूल्यवान संधि का सदुपयोग करना बहुत जरूरी है, परंतु दुर्दैव से हमारे अंदर ऐसी सत्य स्वरूप की सोच-प्रवृत्ति नहीं है।

यदि स्वार्थ व लोभ को छोड़कर हम आपस में प्रेम-भावना, आदर, अपनत्व, समझदारी, सामंजस्य इत्यादि भावनाओं को आत्मसात करें तो हमारे साथ सबका भला होगा।

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